Share Facebook Twitter LinkedIn WhatsApp Post Views: 263 मैं परीक्षित ———— रोशनी करती नहीं अब प्रतीक्षा उगा लिए चेहरे पर अनेक चेहरे पैठा दीं संवेदनाएं कहीं बहुत गहरे मैं परीक्षित खुद की करता समीक्षा सन्नाटा चीखता शोर तो मौन है ऊबा-ऊबा खालीपन लिए चढ़ता-उतरता कौन है सुधियां भी देती नहीं अब भिक्षा – आनंद अभिषेक