Share Facebook Twitter LinkedIn WhatsApp Post Views: 366 चले हैं कितनी दूर जा पहुंचे कहां .. कुछ पता नहीं चलते जा रहे हैं बस निरन्तर.. कभी एक-दूसरे के समानांतर.. कभी एक-दूसरे को काटते हुए चलने की धुन में भूल चुके हैं कि हमें जाना था एक-दूसरे के भीतर. – आनंद अभिषेक