सुबह-सुबह
दरवाजा बहुत देर से कोई
खटखटा रहा था..
करवट बदला और जागा
ये सोचकर चौंका
अरे, मैं जिंदा हूं
उठा, दरवाजा खोला..
हवा थी वहां सांय – सांय करती
न कोई चेहरा था, न पहचान
केवल था अहसास.. मेरी सांसों की तरह
सुबह-सुबह
नींद से सोकर उठना, कोई नयी बात नहीं
दुनिया के करोड़ों-करोड़ लोग सुबह उठते हैं
लेकिन कुछ हमेशा-हमेशा के लिए सो जाते हैं
वे चले जाते हैं वहां, जहां से हवा आनी खत्म हो जाती है
सुबह-सुबह
सोचने लगा क्या मालूम मैं भी न उठ पाऊं कल
क्या यह संभव है?
क्या जीवन मेरे हाथ में है?
अगर नहीं तो केवल आज का ही दिन बचा है
कल का क्या भरोसा?..
तब मुझे सबसे पहले क्या करना चाहिए
मैंने सोचा.. धरती ने सोचा.. आसमान ने सोचा..
सारी कायनात ने सोचा और सबके हल एक जैसे निकले
सुबह-सुबह
सबने कहा – उसे माफ कर दो,
जीवन भर कभी माफ नहीं किया तुमने जिसे
यह सबसे बड़ा बोझ है, इसे लेकर दुनिया से कैसे जा सकते हो
चैन से और उसके बाद खुद को,
क्योंकि तुमने भी कुछ ऐसा किया है जीवन में कि
खुद को नहीं कर पाए हो माफ
बस, इतना कर दो और निश्चिंत हो जाओ अब
सुबह-सुबह
हवा तो दस्तक देगी ही और उठोगे तुम!
– आनंद अभिषेक
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