Share Facebook Twitter LinkedIn WhatsApp Post Views: 894 वादों पर विश्वास किया रस्ता भी था क्या आशाओं की गठरी लेकर चलना भी तो था। बाधाएं तो आती रहती तरह तरह की आँख मिचौली इनसे बच बच राह सँवारी मोह पाश के ऐसे बंधन रुकना भी था। डॉ दिलीप अग्निहोत्री