एक कविता
लावा फूटा है
बह जाने दो
सारी की सारी गरमी
सारी जहरीली गैस
तह तक आते-आते
ठंडी पड़ जाएंगी निराशाएं
बरसेगा पानी
उगेगी वनस्पतियां और
आशा की कोंपल फूटेगी- यह तय है
पर लग सकता है वक्त जरूरु
क्या इंतजार कर सकते हो इतना
इतना कि
सारी गरलता गल जाए
पल जाए सरसता
धैर्य को प्यार कर सको
क्या कर सकते हो इतना
इतना कि
सहला सको
सोंधी मिट्टी से फूटी
पहली उमंग को.
- आनंद अभिषेक