अंशुमान खरे
शी चिनफिंग तीसरी बार पुनः राष्ट्रपति बने, पर चुनाव सवालों के घेरे में आ गया है। शी चिनफिंग ने अपने विरोधियों को एक एक कर पार्टी से निकालने का काम बड़ी ही निर्दयता से किया है। पूर्व पदाधिकारियों को जबरन मीटिंग से निकलवा दिया गया। पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हर हथकंडा अपनाते हुए शी चिनफिंग ने सिर्फ हां में हां मिलाने वालों को पार्टी में रखा है। विरोध का स्वर उठाने वालों के साथ सख्त से सख्त कार्यवाही की धमकी भी दी है। तमाम बड़े पदाधिकारियों और सेना के अधिकारियों को जेलों में डाल दिया गया है या नज़रबंद कर दिया गया है। चीन इस समय समस्याओं से जूझ रहा है। हर ओर बगावत का बोलबाला है।पर शी चिनफिंग के आतंक के कारण लोग फिलहाल शांत हैं। विरोध की आग अन्दर ही अन्दर धधक रही है।
कोरोना महामारी का तांडव चीन को बरबाद करने पर तुला है। देश में तमाम जगहों पर लाकडाउन लगा हुआ है। सुविधाओं के नाम पर चीन में सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। लोगों को लाकडाउन के नाम पर जगह जगह घरों में कैद कर दिया गया है। सड़कें वीरान हैं, सड़कों पर यदाकदा पुलिस और सेना की गाड़ियां कानून व्यवस्था के नाम पर दौड़ रही हैं। लगभग सारे शिक्षण संस्थान, औद्योगिक संस्थान, माल,बड़े बड़े व्यावसायिक संस्थान बंद पड़े हैं। इन परिस्थितियों में चीन से लोगों का पलायन हो रहा है।
रियल स्टेट का काम लगभग ठप्प हो गया है। बड़े बड़े बिल्डर चीन की ढांवाडोल स्थिति को लेकर चिंतित हैं। बिल्डर्स को खरीदार नहीं मिल रहे हैं। बिल्डर्स मकान को कम्प्लीट करके नहीं दे पा रहे हैं। मजबूरन लोग ढांचागत मकानों में रहने को मजबूर हैं। लोगों ने मकान की किश्त देना बन्द कर दिया है या किश्त के लिए पैसे नहीं जुटा पा रहे हैं। सरकार को जनता की परेशानी से कुछ भी लेना देना नहीं है।
चीन की ढांवाडोल स्थिति को देखते हुए तमाम तमाम औद्योगिक संस्थान चीन को छोड़ अन्य देशों में जाने की सोच रहे हैं। शी चिनफिंग का हंटर आम जनता पर भी चल रहा है। जनता को बिजली, पानी, खाने का सामान कुछ भी नहीं मिल पा रहा है। कोरोना से बचत के नाम पर लोगों को छोटे छोटे घरों में कैद कर दिया गया है। विरोध करने पर पुलिस अत्याचार कर रही है। लोग भूखों मर रहे हैं। शी चिनफिंग को लोगों पर हो रहे अत्याचार न तो दिखाई देते हैं और न ही सुनाई देते हैं।
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पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद शी चिनफिंग पहले ऐसे नेता हैं जिन्हें पांच साल के लिए तीसरा कार्यकाल मिला है। ऐसी संभावना है कि शी चिनफिंग ताउम्र चीन की सत्ता पर काबिज रहेंगे। यह पच्चीस साल में पहली बार है कि पोलितब्यूरो में कोई महिला नहीं है। इस मौके पर शी चिनफिंग ने कहा कि दुनिया के बिना चीन का विकास नहीं हो सकता और दुनिया को भी चीन की जरूरत है। चीन को दुनिया नज़रन्दाज नहीं कर सकती। शी चिनफिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था की तथाकथित सकारात्मक तस्वीर पेश की जो अर्थव्यवस्था कोविड के दौरान लगाई पाबंदियां के कारण मंदी के दौर से गुजर रही थी। शी चिनफिंग ने सीपीसी के काडर से कहा-“हमें चीनी संदर्भ में मार्क्सवाद को अपनाकर ऐतिहासिक और दृढ़ पहल करनी चाहिए।नए युग में चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद के विकास में नए अध्याय को लिखना चाहिए।”
शी चिनफिंग ने अमेरिका सहित पश्चिमी देशों पर निशाना साधा। अमेरिका और पश्चिमी देशों में चीन के विरुद्ध बढ़ती नकारात्मकता का स्पष्ट संदर्भ लेते हुए कहा कि हमें तेज हवाओं, भीषण लहरों, दुष्प्रचारों और खतरनाक तूफान का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय स्थितियों में नाटकीय बदलाव विशेष रूप से ब्लैकमेल करने,रोकने और बाधित किए जाने के के बाहरी प्रयासों के बीच हमने चीन के राष्ट्रीय हितों को पहले रखा है।
शी चिनफिंग ने चीन की जनता से अपील की कि संघर्ष करने की हिम्मत रखो, जीतने की हिम्मत रखो, कड़ी मेहनत करो और आगे बढ़ते रहो। तुम पर कोई विजय नहीं पा सकता। तुम दुनिया में श्रेष्ठतम हो।
शी चिनफिंग की दादागिरी के खिलाफ लोगों में अच्छा खासा रोश है। बड़ी बात नहीं कि शी चिनफिंग के वरोध में लोग खड़े हो जाएं। पूरे चीन में हाहाकार मचा है । कोविड के नाम पर लोगों की धरपकड़ जारी है।चीन की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है। अस्पतालों में इलाज के नाम पर दवाएं नदारद,डाक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी अफरातफरी में काम नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा सुना जाता है कि सरकार का विरोध करने वाले को पागलखाने में डाल दिया जाता है ,जहां उनका जमकर उत्पीड़न होता है। बहुतों को मौत के घाट उतार दिया जाता है।चीन इस समय नर्क से कम नहीं है। कुछ भी सामान्य नहीं है। घरेलू उद्योग धन्धे बन्द होने के कगार पर हैं। मार्केट में दुकानों में ताले लटक रहे हैं। भुखमरी से त्राहि त्राहि मची है।
इतना सब होने के बाद भी शी चिनफिंग ताइवान पर नजर रख रहे हैं। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के कारण कभी भी शांत नहीं बैठता है। ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है और युद्ध करके ताइवान को हथियाना चाहता है। जबकि ताइवान अपने को स्वतंत्र राष्ट्र मानता है। ताइवान के साथ अमेरिका खड़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्पष्ट शब्दों में चीन को चेतावनी दी है कि वह ताइवान से दूर रहे। अमेरिका ने ताइवान की हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।अमेरिका अपनी सेना को ताइवान की रक्षा के लिए तैयार कर रखा है।
शी चिनफिंग का अपने सभी पड़ोसी देशों से छत्तीस का आंकड़ा है। जब तब हिन्दुस्तान से भी पंगा लेने की कोशिश करता रहता है। खोखला होता जा रहा चीन बारूद के ढेर पर बैठा है। अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है। चीन में निर्मित सामान की साख भी कम होती जा रही है।चीन में निर्मित सामानों का निर्यात लगातार कम होता जा रहा है। युद्ध की धमकी देने वाले चीन के पास जो हथियार हैं वह भी स्तरीय नहीं हैं। चीन को भी आभास हो गया है कि उसके पास अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के हथियार नहीं हैं। चीन की बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था की पोल खुल गई है। चीन का साथ देने वाले देशों की भी संख्या लगातार कम होती जा रही है। अगर चीन ने अपने में सुधार नहीं किया तो दुनिया की भीड़ में वह अकेला ही रह जाएगा।
अब कोई चमत्कार ही चीन को टूटने से बचा सकता है। चीन के विभिन्न भागों में विरोध की चिन्गारियां दिखने लगी हैं।विरोध को एक सीमा तक दबाया जा सकता है। शी चिनफिंग ने अपनी आतंकवादी गतिविधियों के कारण अनगिनत दुश्मन पाल लिए हैं। सेना में भी बगावत के सुर उठने लगे हैं।शी चिनफिंग को अपना कार्यकाल पूरा करने में दुश्वारियों का सामना करना पड़ सकता है।अगर सेना में विद्रोह हो गया तो चीन को एक रखना बहुत बड़ी चुनौती होगी।