जानिए क्या है इन दोहों का गंभीर अर्थ!
रहिमन विपदा हूं भली, जो थोड़े दिन होये
हित अनहित या जगत में, जानी परत सब कोए।
अर्थ –
रहीम कहते है अगर विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है की संसार में कौन हमारा हितैषी ( साथी या मित्र या फिर हमारा चाहने वाला ) है और कौन नहीं।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
अर्थ –
खजूर का पेड़ न तो राही को छाया देता है और न ही उसका फल आसानी से पाया जा सकता है इसी तरह उस शक्ति का कोई महत्व नहीं है जो दूसरों के काम नहीं सकती।
वृक्ष कभू नहीं फल भखै, नदी न सांचे नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।
अर्थ –
वृक्ष कभी अपने फल नही खाते और ना ही नदी कभी अपना जल संचित करती है लोक कल्याण के हेतु बहती रहती है
वैसे ही एक सच्चा साधू भी अपने सुख दुःख कष्टो की चिंता न करके औरो के लिए अपने शरीर मन आत्मा से कल्याण का भाव रखे वही सच्चा संत साधू है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ-
बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।”
अर्थ-
जीवन में जो लोग हमेशा प्रयास करते हैं वो उन्हें जो चाहे वो पा लेते हैं जैसे कोई गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ पा ही लेता हैं। लेकिन कुछ लोग गहरे पानी में डूबने के डर से यानी असफल होने के डर से कुछ करते ही नहीं और किनारे पर ही बैठे रहते हैं।
क्या सीख मिलती है-
महान संत कबीर दास जी के इस दोहे से हमें सीख मिलती हैं तो हमें अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातार प्रयास करते रहना चाहिए, क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती और एक दिन वे सफल जरूर होते हैं।
कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।
देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।”
अर्थ-
कबीर दास जी कहते हैं जब तक देह है तू दोनों हाथों से दान किए जा। जब देह से प्राण निकल जाएगा। तब न तो यह सुंदर देह बचेगी और न ही तू फिर तेरी देह मिट्टी की मिट्टी में मिल जाएगी और फिर तेरी देह को देह न कहकर शव कहलाएगा।
क्या सीख मिलती है-
कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गरीबों पर और जरूरतमंद लोगों की अपने जीवन में मद्द करते रहना चाहिए। इसका फल भी अच्छा होता है।
या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।
अर्थ-
इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह सम्बन्ध न जोड़ो। सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं।
क्या सीख मिलती है-
कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें मायारुपी संसार से मोह नहीं करना चाहिए बल्कि अपना ध्यान गुरु की वंदना में लगाना चाहिए।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।”
अर्थ-
मपुर वाणी का अर्थ है मीठा बोलना। मीठी वाणी प्रेम का भाव व्यक्त करती है और हम सबका धर्म है प्रेम से रहना। हमारी भाषा ही हमारा व्यक्तित्व दर्शाती हैं अगर कोई आपके बारे में नहीं जानता हो और उसे नहीं पता कि आप कौन हो, तो ऐसी स्थिति में आपकी भाषा ही आपका व्यक्तित्व दर्शाएगी। सामने वाले आपकी भाषा को आपका व्यक्तित्व मानेगा। मीठी वाणी की मधुरता सुनने वाले के हृदय को पिघला देती है। उसको शीतलता प्रदान करती है। और उसका मन और कान मीठी वाणी से मोहित हो जाता है। मीठी वाणी बात का महत्व बढ़ा देती है।
मीठी वाणी के शब्दों में असीम शक्ति के कारण किसी का दिल जीता भी जा सकता है।
अर्थात मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।
क्या सीख मिलती है-
कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने घमंड में नहीं रहना चाहिए और अक्सर दूसरों से मीठा ही बोलना चाहिए, जिससे दूसरे को खुशी मिल सके और सकारात्मकता फैल सके।
धर्म किये धन ना घटे
अर्थ-
समाज में कई ऐसे चतुर मनुष्य हैं तो यह सोचते हैं कि वे अगर गरीबों की मदद के लिए दान-पुण्य करेंगे तो उनके पास धन कम बचेगा या फिर वह सोचते हैं कि दान-पुण्य से अच्छा है उन पैसों का इस्तेमाल बिजनेस में करो, ऐसी सोच वालों के लिए कबीरदास जी का यह दोहा काफी शिक्षा देने वाला है –
दोहा-
“धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर। अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।”
अर्थ-
कबीर दास जी कहते हैं कि धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटता नहीं। धर्म करके स्वयं देख लो।
क्या सीख मिलती है-
महाकवि कबीरदास जी के दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने जीवन में दूसरी की मदद के लिए तत्पर रहना चाहिए और दान-पुण्य करते रहना चाहिए।
कहते को कही जान दे
आज के समय में कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो किसी न किसी बात को लेकर अक्सर दूसरे पर आरोप लगाते हैं या फिर अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं ऐसे लोगों के लिए कबीर दास जी का यह दोहा काफी शिक्षा देने योग्य हैं-
दोहा- “कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय। साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।”
अर्थ-
उल्टी-पल्टी बात बकने वाले को बकते जाने दो, तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर। साकट (दुष्टों)तथा कुत्तों को उलट कर उत्तर न दो।
क्या सीख मिलती है-
महान विचारक कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमसे अगर कोई बुरे वचन बोल रहा है तो उसे नजरअंदाज कर देना चाहिए और अपने मुख से कभी बुरे वचनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।