इतने दिन तो दूर रहे
फिर आओ इस पार
अब तो नदिया उतर रही
जाने को है बाढ़।।
मड़ई फिर से डूबी थी
खाली हो गए हाँथ
नए सिरे से देखेगें
जीवन के दिन रात।।
ऊंचे टीले ने दिया
फिर से अपना साथ
कल की एक उम्मीद है
थोड़ा सा विश्राम।।
इतना भी क्या कम हुआ
सभी लोग हैं साथ
कोने में दुबके हुए
अपने गऊ व श्वान।।
-दिलीप अग्निहोत्री