कवि के एक पांव में चप्पल
दूसरे में जूता है
कवि बहुत जल्दी में है
बस भागे चला जा रहा है
कवि ने बाएं कंधे पर एक झोला भी
टांग रखा है
झोले की बद्दी थोड़ा लंबी है
कवि बार–बार झोले को कंधे पर
संभाल रहा है
कवि ने अपनी गति और बढ़ा दी है
इतनी कि उसे कोई पकड़ न पाए
राह चलते लोग कवि को बेतहाशा भागते देख रहे हैं
बीच में से कोई आता है
कवि को रोक कर पूछने की कोशिश करता है
कि वो बेसुध–सा किधर भागे चला जा रहा है
कवि उसकी कोशिश को बेअसर कर
भागे ही चला जा रहा है
आगे एक सज्जन कवि को जबरन रोक कर
पूछ ही लेते हैं कि कहां भागे जा रहे हो, कविवर
कवि दो सेकंड रुकता है
कंधे पर टंगा झोला ठीक करता है
बताता है कि वो इजराइल की ओर भाग रहा है
यहां बैठकर कविता ठीक बन नहीं पा रही
इजराइल जाएगा, वहीं कुछ दिन रहकर युद्ध एवं नरसंहार पर क्रांतिकारी कविताएं लिखेगा
बाद में एक बड़े प्रकाशक से अपनी कविताएं छपवाएगा…
कवि फिर से भागना शुरू कर दिया है
- अंशु माली रस्तोगी