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दो कवितायेँ ; हँसी-1
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ऐसा नहीं कि हँसता नहीं हूं
जब हँसता हूं-
अंदर से थरथराने लगता हूं
जैसे चुप्पी साधे
झील में कोई पत्थर उछाले
हँसी-2
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जब खुद से
नाराज़ होता हूं तो
खुद को गुदगुदाने लगता हूं
चेहरे पर आखिरकार
आ ही जाती है हँसी
मुझे हँसता देख
नाराज़गी भी हाथ हिलाते
चली जाती है
– आनंद अभिषेक