भारत की विशेष धनुर्धर दीपिका कुमारी
नए भारत का गौरव है दीपिका कुमारी महतो। अदम्य साहस और पहाड़ जैसा धैर्य। अर्जुन के समान सिर्फ लक्ष्य पर नज़र। आदिवासी समाज मे जन्मी। वो भी लड़की होना। रूढ़िवादी समाज की ज़मीन फाड़कर दीपिका ने प्रतिभा का लोहा मनवाया। इतने तीर मारे की दुनिया की सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर को घुटनो पर ला दिया। – ब्रजेश मिश्रा
जी के चक्रवर्ती
आज जब हम नारीशक्ति और उनकी दक्षता की बात करते हैं तो हमारे देश की अनेकों नारियों ने पर्वतारोहण से लेकर दौड़ यहां तक कि निशाने बाजी जैसे खेलों में राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय स्तरों तक में अपना नाम और देश का नाम भी रौशन किया है। यदि हम ऐसे ही नारी शक्तियों में से एक नाम हमारे देश भारत की लोकप्रिय महिला तीरंदाज दीपिका कुमारी महतो है।
दीपिका का जन्म देश की झारखंड प्रदेश की राजधानी रांची में13 जून 1994 को हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मी दीपिका कुमारी आज हमारे देश की ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तीरंदाजों में से एक हैं। दीपिका कुमारी ने अभी तक कई अंतराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। दीपिका ने कई अंतरराष्ट्रीय मेडल भी अपने नाम किये हैं। एक के बाद एक सफलता प्राप्त करने के बाद वर्ष 2016 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दीपिका को “पद्मश्री अवॉर्ड” से सम्मानित किया। दीपिका यह सम्मान पाने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय खिलाड़ी है।
दीपिका कुमारी को बचपन से ही तीरंदाजी या निशाना लगाने में बहुत रुचि रखती थी। उसका निशाना भी बहुत सटीक हुआ करता था। एक दिन दीपिका अपनी मां के साथ कहीं पर जा रही थी कि रास्ते में एक आम का पेड़ दिखा तो दीपिका ने अपनी मां से आम तोड़ने की बात कही लेकिन उनकी मां ने यह कहते हुए उसे मना किया कि पेड़ बहुत ऊँचा हैं और तुम नहीं तोड़ पाओगी, लेकिन दीपिका ने अपनी मां के बात को नज़रअंदाज करते हुये उस आम पर निशाना साध कर एक पत्थर फेंका देखते ही देखते आम जमीन पर आ गिरा।
उसी वख्त से यह लगने लगा कि उसका निशाना अच्छा है। दीपिका कुमारी को तीरंदाजी करना अच्छा लगता था। एक दिन किसी ने दीपिका को बताया कि झारखण्ड के सरायकेला में तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। इस पर दीपिका ने अपने पिता से उसे वहां ले चलने के लिए कहा। दोपिका के पिता शिव नारायण ने अपनी बेटी को वहां ले जरूर गए, लेकिन दीपिका को वहां असफल रही।
दीपिका कुमारी के दिलोदिमाग में बस एक ही बात रच-बस गई कि तीरंदाज बनना है और इस चाहत ने उसे आगे बढ़ते रहने के लिये हमेशा प्रेरित किया। पहली बार असफलता मिलने से वह निराश अवश्य हुई लेकिन उनके पिता शिव नारायण अपनी बेटी को निराश देख दीपिका को कोचिंग करवाने का निर्णय लेकर दीपिका को साथ लेकर एक कोच के पास पहुंचे लेकिन कोच ने उनके उम्र का हवाला देते हुये उन्हें मना कर दिया लेकिन दीपिका ने खुद को साबित करने के लिए कोच से 6 महीने का समय माँगा और 6 महीने दीपिका जी-तोड़ मेहनत की जिसके परिणामस्वरूप उनका चयन हो गया।
दीपिका ने वर्ष 2005 में झारखंड के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा द्वारा प्रारम्भ किया गया अर्जुन आर्चरी अकादमी में भी शामिल हुई। इसके ठीक एक वर्ष बाद वर्ष 2006 में उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी में शामिल हुई। वहां दीपिका ने तीरंदाजी के कला-कौसल में पारंगत होने के पश्चात वर्ष 2006 में मैरीदा मेक्सिको में आयोजित वल्र्ड चैंपियनशिप में कम्पाउंट एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर अपना ही नही बल्कि देश के नाम को भी ऊंचा किया।