अंशुमाली रस्तोगी
सेंसेक्स साठ हजार पार कर गया। लेकिन अभी बूढ़ा नहीं हुआ है। जवान है। आगे एक लाख पार कर जाएगा, तब भी जवान ही रहेगा। दलाल पथ पर खुशियां मनाई जा रही हैं। निवेशकों के चेहरे चमके हुए हैं। अखबारों में छपी खबरें बता रही हैं कि भारत (न्यू इंडिया) की अर्थव्यवस्था- कोरोना काल के बाद- टॉप पर पहुंच गई है। कोरोना काल में कितने ही लोग बेरोजगार हुए, अवसाद का शिकार हुए, आत्महत्या तक कर गए मगर इस पर बात करना फजूल है क्योंकि न्यू इंडिया में ‘नकारात्मक खबरों’ की कोई जगह नहीं। सेंसेक्स, अर्थव्यवस्था और न्यू इंडिया तीनों मिलकर इतिहास रच रहे हैं। जोकि पिछले सत्तर बरसों में नहीं रचा गया।
शेयर बजार के पंडितों, जानकारों, विशेषज्ञों की बांछें खिल गई हैं। वे इस खुशफहमी में ही लोहालाट हुए जा रहे हैं कि सेंसेक्स के बहाने निवेशकों को कामयाबी (पैसा बनाने) दिलाने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही। कल एक बिजनैस चैलन पर कुछ कथित विशेषज्ञ झूमते हुए देखे-पाए गए। बहती गंगा में भला कौन नहीं अपने हाथ धोना चाहेगा। इतिहास गवाह है कि सेंसेक्स ने जब भी ऊंची छलांग लगाई है कुएं में मुंह छिपाए बैठे विशेषज्ञ, जानकार तुरंत बाहर निकल आते हैं अपनी पीठ थपथपाते हुए।
चारों तरफ बड़ा शोर मचा हुआ कि ये खरीदो, वो खरीदो- यहां इन्वेस्ट करो, वो वाला म्यूच्यूअल फंड लो, ये शेयर पक्का लाभ देगा आदि-आदि। जब भी सेंसेक्स का टैंपू हाई होता है प्रायः ऐसी आवाजें बहुत तेज हो जाया करती हैं। कान के परदे फटने लगते हैं। लगता है कि निवेश सीधा कान में ही घुसा चला आ रहा है। इस बीच कथित लाभ की आड़ में कितने ही अपना उल्लू सीधा कर चंपत हो जाते हैं, ऐसी बहुत-सी कहानियां हैं। तब सरकार भी उनका कुछ नहीं कर पाती। ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ सरीखे झूठे दिलासे कितने ही दे ले।
मैंने शेयर बाजार के कथित जानकारों यथा विशेषज्ञों को हमेशा ‘कद्दू’ ही माना है। यकीन मानिए, ‘कद्दू’ से बढ़कर वे कुछ होते भी नहीं। दौड़ते-भागते बाजार में कोई भी ऐरा-गैरा विशेषज्ञ बन अपना कॉलर ऊंचा कर टीवी चैनलों पर इतरा व इठला सकता है। लेकिन गिरते-लुढ़कते बाजार में यही जानकार-विशेषज्ञ अपना पल्लू बचाए-बचाए नजर आते हैं।
देखिए जनाब, सुनिए हुजूर- सेंसेक्स के साठोत्तरी होने का जश्न अभी जितना चाहे मना लीजिए मगर इतना ध्यान रखिए कि यहां बाजार का जानकार-विशेषज्ञ कोई नहीं। सब अपनी-अपनी- चैनलों पर बैठकर- दुकानें चला रहे हैं। जो व्यक्ति यह दावा करता है कि उसने शेयर्स या सेंसेक्स की चाल को अच्छे से समझ लिया है, पक्का ‘शेखचिल्ली’ है। क्योंकि सेंसेक्स को समझ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।