मशीनी युग चाहे जितना भी क्यों न विकास कर ले लेकिन गरीबी का विकास नहीं हो सकता, यही कारण है कि चंद रुपयों की खातिर लोग आज भी अपनी जान की परवाह किये बगैर सीवर के नाले में उतर जाते हैं और हादसे का शिकार हो जाते हैं।
अब यह विडंबना ही है कि जहां तमाम आधुनिक तकनीकों की मदद से जोखिम वाले कामों को आसान बनाने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं हमारे देश में सफाई का काम करते हुए लोगों की जान चली जाती है। सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौतों पर सरकार और संबंधित विभागों का व्यवहार संवेदनशील नहीं होता।
इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि अब सीवर सफाई के दौरान जान गंवाने वाले व्यक्ति के परिवार को तीस लाख रुपए का मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा अगर यह काम करते हुए कोई कामगार स्थायी दिव्यांगता का शिकार हो जाता है तो उसे कम से कम बीस लाख रुपए का भुगतान करना होगा यह बात तो स्पष्ट है कि इस तरह की सफाई के लिए जिन लोगों को सीवर में उतारा जाता है, वे समाज के सबसे निचले वर्गों से आते हैं। और इस काम के दौरान उनकी सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया जाता है।
इन लोगों को गैस मास्क या सुरक्षा उपकरण नहीं उपलब्ध कराए जाते। काम के दौरान जब दुर्घटना होती है, उसमें मजदूरों की जान चली जाती है या वह किसी अंग से लाचार हो जाता है तो उसे पर्याप्त मुआवजा नहीं मिलता और इसके प्रति कोई संवेदनशीलता भी नहीं दिखाई जाती।
कोर्ट का आदेश इस लिहाज से अहम है कि इसमें मुआवजे के मामले में जिम्मेदारी तय की गई है। हालांकि सीवर सफाई के काम पर दस वर्ष पहले प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन इस कानून पर अमल नहीं हो रहा है। इस संबंध में केंद्र ने संसद में बताया था कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान पूरे देश में 339 लोगों की मौतें हुई थीं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यह काम रोकना किसकी जिम्मेदारी है। इस दिशा में सरकार को ध्यान देना होगा।