एनसीपी से बगावत कर महाराष्ट्र सरकार में शामिल अजित पवार ने पहले तो चाचा शरद पवार को अपना नेता और गुरु बताया फिर इसके बाद गुरु पर ही सवाल खड़े कर दिए , अब इस राजनीति की रस्साकशी में अपनी -अपनी राजनीति चमकाने के लिए उठापटक के दावं पेंच महाराष्ट्र में जारी हैं देखना है यह है कि गुरु चेले पर भारी पड़ता है या चेला ?
महाराष्ट्र की राजनीति में नाटकीय घटनाक्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते बुधवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के शरद पवार और अजीत पवार गुटों ने अपने- अपने समर्थको की बैठकें की और शक्ति प्रदर्शन किया। हालांकि अभी स्थिति साफ नहीं है क्योंकि पार्टी के कई सदस्य दोहरी सोच में हैं। कई लोग तो अजीत पवार के साथ हैं किंतु ऐसे भी सदस्य हैं जो अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर रहे हैं और हालात की नजाकत का अंदाजा लगा रहे हैं। हालांकि अजीत पवार पहले भी भाजपा के साथ जा चुके हैं लेकिन तब शरद पवार ने स्थिति को संभाल लिया था और अजीत पवार अपने घर वापस आ गए थे।
इस बार स्थिति दूसरी है। पवार सीनियर ने पार्टी की कमान अपनी बेटी सुप्रिया सुले के हाथों में दे दी हैं। इससे अजीत पवार का पार्टी मुखिया बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया। इसीलिए वे अपने पूरे दमखम से बड़ी संख्या में राकांपा के विधायकों और सांसदों को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ चले गए। इससे ज्यादातर बड़े और शरद पवार के भरोसेमंद नेता पार्टी से अलग हो गए हैं।
राकांपा अब अजीत पवार और उनके साथ गए नेताओं के कदम को गैरकानूनी बता रही है। वैसे महाराष्ट्र में पिछले चार सालों में सैद्धांतिक मूल्यों को धता बताते हुए सत्ता में शामिल होने की दौड़ चल रही है लेकिन इस बात का नतीजा यह है कि इस सिद्धांतहीनता से आखिरकार मतदाता ही ठगे जा रहे हैं। यह बात शिवसेना से अलग हुए गुट में देखी गई और अब राकांपा से अलग होने वालों में भी दोनों ही दलों के नेताओं ने मतदाताओं को ही ठगा है। ऐसी गतिविधियों से अंततः यह बात स्पष्ट होती है कि इनसे लोकतांत्रिक मूल्यों का ही हनन होता है। ऐसे कदमों पर लगाम लगनी चाहिए। जिससे जनता में शुचिता का एक सन्देश जाए ।