नवेद शिकोह
ये पत्रकार पत्रकारिता की शान हैं। ये नौकरी मांगने के बजाय अखबार कर्मियों को नौकरी देने के लिए संघर्षरत हैं।
ये ऐसे पत्रकार हैं जिन्होंने अपनी पत्रकारिता जारी रखने के साथ खुद अखबार निकालने का बड़ा रिस्क लिया है। और ये कामयाब भी हुए है। पत्रकार का अखबार संचालन में योगदान हो तो इससे बढ़ कर और क्या हो सकता है। दशकों मरीजों का इलाज करने वाले डाक्टर नरेश त्रेहन अस्पताल (मेदांता अस्पताल) का संचालन बेहतर करेगा या कसाई बेहतर अस्पताल चलाएगा !
मनोज मिश्र, सुमन गुप्ता, विनेश ठाकुर, योगेन्द्र विश्वकर्मा, नीरज श्रीवास्तव, राजेन्द्र गौतम, , के सी विश्नोई जी, सरोज त्रिवेदी, अरुण त्रिपाठी आशु वाजपेई जी .. इत्यादि पत्रकार अखबार निकालकर पत्रकारिता का सबसे बड़ा दायित्व निभा रहे हैं। ये सिर्फ अपनी पत्रकारिता ही जारी नहीं रखे हैं ये लोग चाहते हैं कि पत्रकारिकता में नौकरी के दायरे बड़े हों। इस संकल्प और लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन पत्रकारों को बड़ी मशक्कतों का सामना करना पड़ता है।
मौजूदा वक्त में अखबारों पर कॉरपोरेट घरानों ने कब्जा जमा लिया है। ऐसे में जिन पत्रकारों ने बाकायदा अखबार निकालकर मार्केट में देने का जो साहस किया है वो अद्वितीय कदम है। इनमें से ज्यादातर पत्रकार आठ-दस हजार महीने की नौकरी करते थे। बिना किसी उद्योग घराने के सहयोग, बिना किसी राजनीतिक दल या हुकूमत की मदद के इन्होंने बाकायदा मार्केट को संपूर्ण अखबार दिए हैं।
अपना जीवन देकर और अपने खून-पसीने के संघर्षों से इन लोगों ने वेब प्रिंटिंग मशीने खड़ी की। ऑफिस खोले, अखबार कर्मियों को नौकरी दी और निष्पक्ष कंटेंट की पत्रकारिता के साथ अखबारों को जिन्दा रखने के लिए अपनी ज़िन्दगी को वक्फ कर दिया हैं।
आज उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक शिशिर जी से इन पत्रकारों की बैठक थी, जिसमें पत्रकारिता और अखबार निकालने की चुनौतियों पर चर्चा हुई।