भारतीय जन जीवन में लोक संगीत सहज स्वभाविक रूप में समाहित है। जीवन से जुड़े सभी प्रसंगों से संबंधित लोक गीतों की भरमार है। यहां प्रभु ने मनुष्य रूप में अवतार लिया। बाल्यकाल से लेकर धर्म धर्म व क्षेत्र कुरु क्षेत्र तक प्रभु अलौकिक लीला करते है। प्रभु भोलेनाथ व माता पार्वती के प्रसंग भी आस्था से जुड़े है। इन सभी विषयों पर लोक गीतों व नृत्य की युगों युगों से परम्परा चली आ रही है। भाषा व क्षेत्र के अनुरूप इनमें विविधता रहती है। लेकिन इन सभी की सांस्कृतिक भावभूमि समान है। सोनचिरैया संस्था आजादी के अमृत महोत्सव समारोह में भी सहभागी रही है। स्वतन्त्रता संग्राम में लोक कलाकारों ने भी अपने अपने ढंग से योगदान दिया था। लोक कला के माध्यम से वह देश भक्ति की प्रेरणा दे रहे थे।
अमृत महोत्सव का यह वर्ष जन जन की चेतना को स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की महान गाथाओं, महापुरूषों की स्मृतियों एवं उनकी मूल प्रेरणाओं से जोड़ने का अवसर दिया। जिन लोक महानायकों ने आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाया उन्हें नमन किया गया। सोन चिरैया ने लखनऊ में तीन दिवसीय भारत की लोक कलाओं का अमृत महोत्सव देशज का आयोजन किया गया था।
वस्तुतःलोक कलाओं के संरक्षण।संवर्द्धन के साथ उसको नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए प्रचार प्रसार की जरूरत है। लोक कलाओं में हमारी परम्पराएं जीवन्त हैं। ऐसे आयोजन लोक कलाओं के संवर्धन में महत्वपूर्ण है। लोक कलाओं के निरंतर विकास में गुरुओं का महत्वपूर्ण स्थान है।
अमृत महोत्सव आयोजन के संबन्ध में पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने बताया था कि यह महोत्सव सोनचिरैया संस्था के दस वर्ष पूर्ण होने के अवसर को अविस्मरणीय बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था। इस लोक महोत्सव को भारत के स्वाधीनता संग्राम में लोक कलाकारों का योगदान की विषय वस्तु पर केंद्रित किया गया था।
- डॉ दिलीप अग्निहोत्री