जब हम भारतीय क्रिकेट और क्रिकेट प्रेमियों की बात करतें है तो खेलप्रेमियों के दिलो-दिमाग मे उत्साह की हद तक जुनून रखने वाले देशवासियों का क्रिकेट के प्रति गहरा जुड़ाव रहा है।
जैसा कि हम सभी को पता है कि किसी भी खेल या प्रतियोगिता में हार जीत का होना उसका अभिन्न अंग है। किसी भी खेल में एक का जीतना और दूसरे का हारना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कोई हारेगा तभी दूसरा जीतेगा, लेकिन चूंकि क्रिकेट का खेल प्रत्येक भारतीय जनमानस के ह्रदय के गहराइयों तक समाहित है इसलिये हारने की अवस्था मे व्यक्ति को स्वयं के ऊपर ही क्रोध का आवेग पैदा होना स्वभाविक है। दअसल क्रिकेट में रचे-बसे व्यक्ति के दिमाग में अपने आप को लेकर एक सकारात्मक सोच होना तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में दिलो दिमाग या मन के सोच के ठीक विपरीत चीज घटित होना लोगों के मन को आघात पहुंचता है।
जैसा कि 24 अक्टूबर के दिन आईसीसी टी-20 वर्ल्ड कप 2021 का 16वां मुकाबला भारत-पाकिस्तान के बीच रविवार के दिन संयुक्तराष्ट्र अरबअमीरात में खेला गया। जिसके परिणाम से हम सभी अवगत है, लेकिन जब एक जीतने वाली टीम हार जाती है तो इसमें संदेह उत्पन्न होना स्वभाविक है और ऐसे में इस सम्बंध में तरह-तरह की बातें उठना भी स्वाभाविक है। आखिरकार दुनिया की एक बेहद मजबूत टीम का 10 विकेटों से हर जाना बड़ा ही आश्चर्यचकित कर देने वाली ही बात है।
भारत की हार के कई तरह के कारणों पर चर्चा अवश्य हो रही है लेकिन केवल हार के कारणों को जान कर या फिर हार की समीक्षा करने का कोई औचित्य नही जान पड़ता है बल्कि उसका समाधान ढूंढ निकालना कहीं अधिक उत्तम है।
हमारा देश भी विश्व विजेता बना रह सकता था लेकिन यदि उंसने सेमीफाइनल में कुछ महत्वपूर्ण गलतियां न की होतीं। जिसमें से सबसे पहला जैसे कि शिखर धवन और विजय शंकर इन दोनों खिलाड़ियों का सही रिप्लेसमेंट टीम में न किया जाना तो दूसरा कमजोर पड़े मध्य क्रम बल्लेबाजों की समय रहते सही ढंग से नियंत्रित नही किये जाने जैसी गलती करना और इसी के साथ ही भारतीय टीम के कोच अनिल कुंबले और कप्तान विराट कोहली में आपस मे पटरी न खाने जैसी बातें ही कहीं तक जिम्मेदार है। अनिल कुंबले जिस परिवेश से ताल्लुक रखने वाले खिलाड़ी हैं, विराट कोहली उससे पृथक थे। अनिल कुंबले ने जिस वख्त भारतीय टीम के कोच के पद से इस्तीफे में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि, ‘मुझे बीसीसीआइ की तरफ से सूचित किया गया कि कप्तान को मेरी कोचिंग के तरीकों और मुख्य कोच बने रहने को लेकर संदेह है। मैंने सदैव कोच और कप्तान के मध्य की सीमाओं का ध्यान रखा और कभी भी इसका उल्लंघन नही किया।
बीसीसीआइ ने अनिल कुंबले और कप्तान के मध्य उत्पन्न गलतफहमी को दूर करने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन यह साझेदारी आगे स्थिर नही रहने वाली है इसका आभास होते ही अनिल कुंबले ने जिम्मेदारी से मुक्त होने का फैसला लिया है।’ कुंबले के इस्तीफे के बाद रवि शास्त्री के कोच बनने की खबरें थी लेकिन कुछ समय पश्चात बीसीसीआइ द्वारा रवि शास्त्री को ही टीम के नए कोच बनाया गया।
ऐसे में शायद विराट कोहली द्वारा एक बडी भूल ही कहना पड़ेगा क्योंकि विराट ने उस कोच को हटवाने का फैसला किया जो खिलाड़ी के तौर पर वे एक बृहद स्तर रखते है, साथ ही जिनका चयन सचिन, सौरव और लक्ष्मण जैसे दिग्गज खिलाड़ियों द्वारा किया गया था। यदि उस समय पर विराट कोहली पर किसी ने अंगुलियां उठाई होतीं तो शायद आज टीम इंडिया की स्थिति कुछ अलग ही होती।
यहां एक बात बिल्कुल सत्य है कि भारतीय क्रिकेट में कप्तान हमेशा से एक ताकतवर व्यक्तिव रहा है और यह शुरुआत मुख्यतः सौरभ गांगुली के समय से प्रारम्भ हुई है। सौरभ के कप्तानी के दौर में वे जो चाहते और जिस तरह चाहते थे वैसा ही किया जाता था। उस समय तक जगमोहन डालमिया ही क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष हुआ करते थे। कुछ इसी तरह धौनी और एन श्रीनिवासन के समय में देखने में आया था। लेकिन आज की स्थिति पहले से भिन्न हैं। इस समय भारतीय क्रिकेट की प्रशासनिक व्यवस्था एक ऐसी कमेटी के हाथों में है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया है और वास्तविकता तो यह है कि इस कमेटी के सदस्यों के मध्य क्रिकेट के लिए कितना समय या समझ है, यह तो एक बहस का मुद्दा है, लेकिन यह तो निश्चित है कि इस समय विराट कोहली के फैसलों पर प्रश्न करने वाला कोई नहीं होने से वे निर्णय लेने के लिये स्वत्रन्त्र हैं और वही निर्णय मान्य भी है।
- जी के चक्रवर्ती