जी के चक्रवर्ती
यह पूरे देश के लिए बड़ी दुःख की बात है कि ‘द फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर पद्मश्री धावक मिल्खा सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। कोरोना जैसी महामारी ने उन्हें भी चपेट में ले लिया। वह इस बीमारी से कई दिनों से पीड़ित चल रहे थे, उंनका इलाज चंडीगढ़ के पीजीआई हॉस्पिटल में चल रहा था। जहां उन्होंने आज शनिवार को अंतिम साँस ली। वर्ष 1960 में पद्मश्री मिल्खा सिंह ने रोम के ओलिम्पिक खेल के मैदान में एक बड़ा भारतीय इतिहास रच दिया था। जिसे लोग शायद ही कभी भूल पाएं। उन्होंने चार सौ मीटर की दौड़ में पहला स्थान पाकर भारतीय लोगों के दिलों को जोश और उत्साह से भर दिया।
वह अपने व्यक्तिगत जीवन में भी लोगों के बीच सादगी भरा जीवन जीने के लिए मशहूर थे। बता दें कि उनके व्यक्तिगत जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ भी बन चुकी है। उनके जाने के बाद केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजुजू ने एक टीवी शो के दौरान कहा मैं आपसे वादा करता हूँ मिल्खा सिंह जी कि हम आपकी अंतिम इच्छा को पूरा करेंगे।
इसके साथ ही उन्होंने अपनी दुःख संवेदनाएं प्रकट करते हुए कहा कि भारत ने अपना सितारा खो दिया है। मिल्खा सिंह जी हमें छोड़ गए हैं लेकिन वे हर भारतीय को भारत के लिए चमकने के लिए प्रेरित करते रहेंगे। मेरी उनके परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदना हैं मैं उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूं।
मिल्खा सिंह के नाम से जाने पहचाने जाने वाले भारतीय पूर्व ट्रैक और फील्ड धावक के जीवन से जुडी जानकारी पाकिस्तान के अभिलेखों से भी मिलती है अभिलेख के अनुसार, उनका जन्म 20 नवंबर सन् 1929 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में हुआ था, जबकि कुछ अन्य लोगों का कहना है कि उनका जन्म 8 अक्टूबर सन् 1935 को हुआ था।
भारतीय महान धावक मिल्खा सिंह राष्ट्रमंडल के खेलों उन्होंने व्यक्तिगत रूप से स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के एकलौते पुरुष खिलाड़ी थे। दौड़ वाले अनेको खेलों में उनकी शानदार उपलब्धियां रहीं हैं वर्ष 1959 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित भी किया था।
ओलंपिक खेलों में वर्ष 1960 में उन्हें 400 मीटर की फाइनल दौड़ में मिला चौथा स्थान सर्वाधिक यादगार है। यदि हम उनके व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो मिल्खा सिंह का विवाह निर्मल कौर जो स्वमं भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान रहीं उनके साथ हुआ था, उनके एकलौते पुत्र जीव मिल्खा सिंह हैं, उनके पुत्र शीर्ष रैंकिंग के अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर गोल्फर हैं।
मिल्खा सिंह तीन बार भारतीय सेना में शामिल होने में असफल रहने के बाद वर्ष 1952 में सेना की विद्युतिय मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में शामिल होने में सफल हो गये। एक बार उनके कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ के लिए प्रेरित किया, उस वख्त से ही मिल्खा सिंह ने अपना अभ्यास जारी रखते हुये कड़ी मेहनत के बल पर वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों से सुर्खियों में आये। उन्होंने वर्ष 1958 में कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 और 400 मीटर के दौड़ में पूर्व के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।
उनका सबसे बड़ा और सबसे सुखद क्षण उस समय आया जब उन्होंने रोम में हुए वर्ष 1960 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में चौथा स्थान प्राप्त किया था। वर्ष 1964 में, उन्होंने टोक्यो में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में भी देश का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 1958 में रोम में आयोजित हुई ओलंपिक रेस में उन्होंने 400 मीटर की दौड़ जीतने के साथ-साथ वर्ष 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक भी जीते थे। इसके अतिरिक्त वह वर्ष 1958 के एशियाई खेलों (200 मीटर और 400 मीटर श्रेणियों में) और वर्ष 1962 के एशियाई खेलों (200 मीटर श्रेणी में) में भी रिकॉर्ड अपने नाम किये थे।
यह, वर्ष 1962 में पाकिस्तान में हुई वह रेस थी जिसमें मिल्खा सिंह ने टोक्यो एशियाई खेलों की 100 मीटर रेस में अब्दुल खलीक को हरा कर स्वर्ण पदक विजेता बने और उनको पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने ‘द फ्लाइंग सिख’ नाम दिया था।
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह को मिली सफलताओं के सम्मान में, उन्हें भारतीय सेना में सिपाही के पद से कनिष्ठ कमीशन अधिकारी पर पदोन्नत कर दिया गया। अंततः वह पंजाब शिक्षा मंत्रालय में खेल निदेशक बनकर कार्यरत रहे और वर्ष 1998 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
महान धावक मिल्खा सिंह ने अपनी अंतिम सांस पीजीआई चंडीगढ़ में ली। मिल्खा सिंह ने जीत में मिले पदक को देश को समर्पित कर दिया था उन पदकों को शुरुआत दौर में नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रदर्शित किया गया था।