शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) पर विशेष
डा. जगदीश गांधी
5 सितम्बर को एक बार फिर से सारा देश भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन के जन्मदिवस को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने जा रहा है। हम सभी जानते हैं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति उनके नागरिकों पर निर्भर होती है और इन नागरिकों को गढ़ने का काम उस देश के शिक्षक करते हैं। एक कुशल शिक्षक अपने प्रत्येक छात्र को सभी विषयों की सर्वोत्तम शिक्षा प्रदान करके उन्हें एक अच्छा डॉक्टर, इंजीनियर, न्यायिक एवं प्रशासनिक अधिकारी बनाने से पहले उन्हें एक अच्छा इंसान बनाता है। शिक्षक एक कुम्हार की भांति होता है, जो बच्चों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा के साथ ही अच्छे जीवन-मूल्यों एवं आदर्शों को डालकर उनके चरित्र का निर्माण करते हैं। ऐसे महान शिक्षकों के लिए महान कवि कबीरदास जी ने कहा था – सब धरती कागज करूं, लिखनी सब बनराज। सात समंदर की मसि करूं, गुरू गुण लिखा न जाय। अर्थात् सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समंदर को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरू के गुण नहीं लिखे जा सकते। ऐसे महान शिक्षकों को हमारी ओर से शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
शिक्षक छात्रों को एक अच्छा इंसान बनाता है:
सारा देश मानता है कि वे एक विद्वान दार्शनिक, महान शिक्षक, भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ व्याख्याकार तो थे ही साथ ही एक सफल राजनयिक के रूप में भी उनकी उपलब्धियों को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता। सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का कहना था कि पूरी दुनिया एक विद्यालय है, जहां से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। उनका कहना था कि जीवन में शिक्षक हमें केवल पढ़ाते ही नहीं है, बल्कि हमें जीवन के अनुभवों से गुजरने के दौरान अच्छे-बुरे के बीच फर्क करना भी सिखाते हैं। वास्तव में किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली कैसी भी हो, उसकी प्रभावशीलता एवं सफलता उस देश के शिक्षकों पर निर्भर करती है। ऐसे में एक शिल्पकार एवं कुम्हार की भाँति ही स्कूलों एवं उसके शिक्षकों का यह प्रथम दायित्व एवं कर्त्तव्य है कि वह अपने यहाँ अध्ययनरत् सभी बच्चों को इस प्रकार से संवारे और सजाये कि उनके द्वारा शिक्षित किये गये सभी बच्चे ‘विश्व का प्रकाश’ बनकर सारे विश्व को अपनी रोशनी से प्रकाशित करें।
राष्ट्र के वास्तविक निर्माता शिक्षक हैं:
महर्षि अरविंद ने शिक्षकों के सम्बन्ध में कहा है कि ‘‘शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से सींचकर उन्हें शक्ति में निर्मित करते हैं।’’ महर्षि अरविंद का मानना था कि किसी राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक होते हैं। इस प्रकार एक विकसित, समृ़िद्ध और खुशहाल देश व विश्व के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिटलर के यातना शिविर से जान बचाकर लौटे हुए एक अमेरिकी स्कूल के प्रिन्सिपल ने अपने शिक्षकों के नाम पत्र लिखकर बताया था कि उसने यातना शिविरों में जो कुछ अपनी आँखों से देखा, उससे शिक्षा को लेकर उसका मन संदेह से भर गया।
शिक्षक छात्रों को एक अच्छा ‘इंसान’ बनाने में सहायक बनें:
प्रिन्सिपल ने पत्र में लिखा ‘‘प्यारें शिक्षकों, मैं एक यातना शिविर से जैसे-तैसे जीवित बचकर आने वाला व्यक्ति हूँ। वहाँ मैंने जो कुछ देखा, वह किसी को नहीं देखना चाहिए। वहाँ के गैस चैंबर्स विद्वान इंजीनियरों ने बनाए थे। बच्चों को जहर देने वाले लोग सुशिक्षित चिकित्सक थे। महिलाओं और बच्चों को गोलियों से भूनने वाले कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त स्नातक थे। इसलिए, मैं शिक्षा को संदेह की नजरों से देखने लगा हूँ। आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप अपने छात्रों को एक अच्छा ‘इंसान’ बनाने में सहायक बनें। आपके प्रयास ऐसे हो कि कोई भी विद्यार्थी दानव नहीं बनें। पढ़ना-लिखना और गिनना तभी तक सार्थक है, जब तक वे हमारे बच्चों को ‘अच्छा इंसान’ बनाने में सहायता करते हैं।’’
शिक्षक एक सुन्दर, सुसभ्य एवं शांतिपूर्व राष्ट्र व विश्व के निर्माता हैं:
हमारा मानना है कि भारतीय संस्कृति, संस्कार व सभ्यता के रूप में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ व ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51’ रूपी बीज बोने के बाद उसे स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण व जलवायु प्रदान कर हम प्रत्येक बालक को एक विश्व नागरिक के रूप में तैयार कर सकते हैं। इसके लिए प्रत्येक बालक को बचपन से ही परिवार, स्कूल तथा समाज में ऐसा वातावरण मिलना चाहिए जिसमें वह अपने हृदय में इस बात को आत्मसात् कर सके कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानवता एक है। ईश्वर ने ही सारी सृष्टि को बनाया है। ईश्वर सारे जगत से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करता है। अतः हमारा धर्म (कर्तव्य) भी यही है कि हम बिना किसी भेदभाव के सारी मानव जाति से प्रेम कर सारे विश्व में आध्यात्मिक साम्राज्य की स्थापना करें।
जिंदगी जीने की कला भी सिखाते हैं शिक्षक:
हमारे शिक्षकों का लक्ष्य बहुत महान है, उनके कार्य बहुत बड़े हैं। हो सकता है कि उनके पास संसाधन सीमित हों, किन्तु हमारे शिक्षकों को हौसला ज्यादा बड़ा और संकल्पशक्ति बहुत अधिक मजबूत है। वास्तव में शिक्षक केवल किताबी ज्ञान नहीं देते हैं, बल्कि सभी बच्चों को जिदंगी जीने की कला भी सिखाते हैं। वे उन्हें सिखाते हैं कि कैसे उन्हें अपने ज्ञान का उपयोग मानव कल्याण में करना है न कि मानव विनाश में। विश्व विख्यात विचारक पाऊलो फेरी के अनुसार ‘‘शिक्षा लोगों को बदलती है, और लोग शिक्षा द्वारा दुनियाँ को बदल सकते हैं।’’ ऐसे में हमारे शिक्षकों का यह परम दायित्व है कि वे अपने बच्चों को सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनाये। उन्हें इस सारी सृष्टि से प्रेम करने वाले ‘विश्व नागरिक’ के रूप में विकसित करें। उनके मन-मस्तिष्क में बचपन से इस बात का बीजारोपण करें कि यह सारी पृथ्वी के लोग उनके अपने परिवार के सदस्य ही हैं। ऐसे में अपने शिक्षकों से प्रेरित होकर प्रत्येक बच्चा अपने ज्ञान का उपयोग सारी मानव जाति के कल्याण के लिए ही करेगा और तभी वास्तव में ‘शिक्षक दिवस’ की सार्थकता भी है।