प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए चाहे जितने भी उपाय क्यों न कर लिए जाएं लेकिन इनका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं निकल रहा है। प्रदूषण के लिए तमाम कारक जिम्मेदार हैं जिनके लिए समाज में रहने वाले लोग ही उत्तरदायी हैं। और यह बात समय-समय पर सामने लाई भी जाती है। लेकिन इसका कोई असर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। उल्टे समस्या और गंभीर होती दिखाई देती है।
इस बारे में एक रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की आबोहवा लगातार बिगड़ रही है। लगातार बढ़ती वाहनों की संख्या और आबादी का घनत्व हालात को और भी बदतर कर रहा है। सड़क पर लगने वाले जाम और सड़कों पर खुले गड्ढे हवा में जहर घोल रहे हैं। गोमती को नालों और सीवर का पानी प्रदूषित कर रहे हैं। जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण में बढ़ोतरी से मुश्किलें भी बढ़ गई हैं।
हालिया सर्वेक्षण में वायु प्रदूषण के लिए ट्रैफिक जाम प्रमुख कारण रहा है। दूसरे नंबर पर टूटी-फूटी सड़कों की वजह से धूल उड़ रही है। गोमती में गिर रहे नालों का पानी एसटीपी की क्षमता से कहीं अधिक है। ऐसे में यह नदी लगातार प्रदूषित होती जा रही है।
आईआईटीआर की रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ में इस साल पंजीकृत हुए वाहनों की संख्या 26 लाख 50 हजार 286 हो गई है। 2021-22 में पेट्रोल खपत दो लाख सात हजार किलोलीटर हो गई। ऐसे में स्थिति की गंभीरता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि यह भी सही है कि वायु प्रदूषण में पिछले पांच वर्षों में थोड़ा सुधार हुआ है। इसके पीछे यूपीपीसीबी और जिला प्रशासन की सख्ती भी बड़ी वजह है जबकि आवासीय इलाकों में शोर बढ़ गया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि इस दिशा में अभी और काम किए जाने की जरूरत है।