नवेद शिकोह
इंटर में एडमिशन के लिए हाईस्कूल पास होना जरूरी है। बीए में दाखिला तभी होगा जब आप इंटर पास कर चुके हों। परास्नातक तब कर सकेंगे जब स्नातक उत्तीर्ण कर चुके हों।
इसी तरह मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के भक्त होने के लिए कुछ शर्ते हैं। ये शर्त नहीं कि आप हिन्दू हों,आप सनातन धर्म से ताल्लुक रखते हों। किसी जाति विशेष के हों। ये भी शर्त नहीं कि पूजा-पाठ करते हों। राममंदिर में दर्शन के लिए जाते हों। इन सब से परे भी कोई रामभक्त कहला सकता है। किसी भी धर्म-समुदाय, जाति या देश के उस व्यक्ति के अंदर राम हैं जो मर्यादित है। आपका आचरण, व्यवहार और किरदार बता देता है कि आपके मन-मस्तिष्क में भगवान हैं कि नहीं। अमर्यादित भाषा, क्रोध, कुंठा, ईर्ष्या, द्वेष और घृणा से भरा व्यक्ति कभी रामभक्त नहीं हो सकता।
मर्यादा श्री राम की सबसे बड़ी पहचान है। इसी लिए इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया। मर्यादा का अर्थ है- सम्मान और न्याय परायण। गौरव, प्रतिष्ठा, मान, सुसंस्कारों का पालन। आचरण-व्यवहार और अभिव्यक्ति की सौम्यता का होना। शब्दों के वाणों को भी मर्यादा की सीमा-रेखा,सरहद या दायरे मे रखना।
पुरुषोत्तम का अर्थ है- सर्वोच्च व्यक्ति। मर्यादा पुरुषोत्तम को मिलाइए तो इसके मायने हैं- सम्मान में सर्वोच्च।
श्री राम के चरित्र ने साबित किया है कि जो लोगों को सबसे अधिक सम्मान देता है वो सबसे अधिक सम्मानित व्यक्ति कहलाता है। मर्यादा सम्मान, प्रेम, मानवता, क्षमा की भावना, सुसंस्कारों और न्यायप्रियता का रक्षा कवच है। अनगिनत असीम खूबियां और शक्तियों वाले विष्णु के इस अवतार को मर्यादा पुरुषोत्तम इसीलिए कहा गया क्योंकि मर्यादा की श्रेष्ठता उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा सौंदर्य है। इनकी सर्वोत्तम खूबी को अपनाए बिना हम अमर्यादित होकर श्री राम के भक्त हो ही नहीं सकते। भाषा की शिष्टता-नम्रता, मृदभाषी, न्यायप्रियता, व्यवहार कुशलता का धनी ही रामभक्ति का हक़ रखता है।
पशु-पक्षियों को मित्र मानने वाला और बिना भेदभाव, जात-पात के विपरीत समतामूलक सिद्धांतों पर चलकर समाजवाद का पालन करने वाला ही शबरी के झूठे बेर खाने वाले का अनुयाई हो सकता है।
पिछड़े समाज के एक निर्धन व्यक्ति (शबरी) का भोलापन था कि इस चाहत में कि मीठे बेर श्री राम को दें,कहीं खट्टे बेर उनको ना दे दें। इस स्नेह में शबरी ने बेर पहले चखे और जो बेर मीठे थे वो राम को खाने के लिए दिए। भगवान राम ने झूठे बेर खाए। और ये क़िस्सा छुआछूत, भेद-भाव, ऊंच-नीच ना करने का राम संदेश हो गया।
हर जाति-समुदाय के मनुष्यों से ही नहीं,पशु-पक्षियों, वनस्पति और राक्षस कुल से भी भगवान राम का स्नेह था। रावण वध और लंका जीतने में इन सबकी भागीदारी भी एक मिसाल बनी।
सत्ता मोह की अति में अनैतिकता दिखाने वाले राजनीतिज्ञ राज्य-पाठ त्यागने वाले राम के भक्त कैसे हो सकते हैं। पशु-पक्षियों से क्रूरता करने वाले, जातिवाद-छुआछूत, ऊंच-नीच और असमानता पर विश्वास करने वाले भले ही राम नामी धारण कर राम मय होने का ढकोसला करें लेकिन वो राम के अस्ल उपासक नहीं हो सकते। हेट स्पीच के जरिए नफरत फैलाने वालों को भला कैसे मृदभाषी राम का अनुयाई माना जाए।
त्रेतायुग में अयोध्या में राम की वापसी के शुभ दिन को याद कर हम एक बार फिर दीपावली में इस धरा को दीपों से जगमगाने की तैयारी कर रहे हैं।
आईए इस दीवाली पर प्रण करें कि हम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की मर्यादा और उनके चरित्र की तमाम खूबियों से अपना चरित्र जगमगा देगे। जय सियाराम या जय श्री राम के उद्घोष से सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत है। जय श्री राम नारा लगाकर नकारात्मक, सद्भाव विरोधी अनैतिक और मर्यादित कृत्य करने वाला राम को समझ ही नहीं सका। रामनवमी हो, दशहरा या दीपावली हो, ये अवसर हमें भगवान राम के और भी नजदीक लाते हैं। जितने नजदीक जाएंगे उतने अंधेरे छंटेंगे। अपने आराध्य को समझें, महसूस करें और अपने चरित्र में उतारें।
द्वेष, ईर्ष्या, कटुता, बेइमानी, अन्याय, अत्याचार, असमानता और नफरत के हर अंधेरे को त्याग कर प्रेम का प्रसार करें और रामराज्य की कल्पना को साकार करने के प्रयास की पहल कर हम सच्चे रामभक साबित होएं।