उत्तर प्रदेश दिवस के उपलक्ष मे क्षेत्रीय पर्यटन कार्यालय पर्यटन निर्देशालय उत्तर प्रदेश, नव अंशिका फाउंडेशन और थिएटर एंड फिल्म वेलफेयर एसोसिएशन के तत्वाधान मे लखनऊ नाट्य समारोह के अंतर्गत नाट्य संस्था सफर फाउंडेशन एवं संस्था भरत रंग की मौलिक नाट्य प्रस्तुति दिग्दर्शक का मंचन वाल्मीकि रंगशाला, संगीत नाटक अकादमी परिसर में किया गया। नाटक का लेखन प्रियम जानी एवं निर्देशन चन्द्रभाष सिंह ने किया ।
नाटक दिग्दर्शक एक “गुरु” (शिक्षक) और उसके “शिष्य” (छात्र) से संबंधित है। शिष्य जो अब एक सुपरस्टार है, कई वर्षों के बाद अपने पुराने गुरु जो कि उससे किसी बात पर नाराज़ है, के पास आता है उनसे नाराज़गी का कारण जानने के लिए।
नाटक की कहानी थियेटर के एक निर्देशक के जीवन, विचारों, भावनाओं और समर्पण के बारे में है। बूढ़ा दिग्दर्शक मंच पर अभ्यास कर रहा था और जब वह खांसता है तो एक युवक उसे पानी पिलाता है। युवक एक्टिंग में कामयाब होने के लिए गांव से आया था। दिग्दर्शक ने उसका परीक्षण किया और उसे अभिनय सिखाने का फैसला किया। वह उसे ईमानदारी से सिखाता है। लेकिन अचानक युवक ने थिएटर छोड़ने का फैसला किया और ऐसी फिल्मों में जाना चाहता है जो उसके गुरु को बिल्कुल पसंद नहीं है। उनके लिए थिएटर सिनेमा से कहीं बेहतर था। अपनी बातचीत में कई बार वे थिएटर बनाम सिनेमा के लिए बहस करता है।
आज कल की जनरेशन थिएटर व थिएटर गुरुओं को सिर्फ सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करती है। थिएटर की पवित्रता,और भावनाओं की कोई कद्र नहीं है। जबकि थिएटर फौजी समुदाय की तरह है,क्योकि थिएटर मांगता है सम्पूर्ण आत्म समर्पण, निःस्वर्थता और बलिदान जो कि आज की पीढ़ी में कहीं नदारद है। मंच पर चन्द्रभाष सिंह, सौरभ शुक्ला एवं सुंदरम मिश्रा का शानदार अभिनय देखने को मिला वहीं मंच परे प्रकाश निहारिका कश्यप , अग्नि सिंह , म्यूजिक विशाल वर्मा, मंच व्यवथा कोमल प्रजापति,विशाल श्रीवास्तव, वस्त्र विन्यास साक्षी अवस्थी, श्रुति पांडेय का था नाटक का सह निर्देशन जूही कुमारी ने किया।