अवंतिका श्रीवास्तव
निर्भय और खुशहाल भारत का स्वप्न साकार हो सकता है। भारत का हर परिवार चैन और अमन के साथ हमेशा खुशहाल तरीके से जी सकता है। आश्चर्य इस बात का भी है कि इस महान उपलब्धि को पाने के लिए एक भी रुपए नहीं खर्च होने। बस खर्च होना है मां-बाप/संरक्षक का अपने बच्चों के लिए कुछ वक्त! और सरकार का उचित दिशा में उठाया गया ठोस कदम और इस उठाये गये कदम पर भी कुछ खर्च नहीं होना।
मौलिक अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी की ढाल बना टीवी चैनल और सोशल मीडिया में बच्चों के नैतिक मन को कुप्रभावित करने वाले कार्यक्रमों में पाबंदी लगनी चाहिए। ऐसे अधिकार जो देश की नस्लें बर्बाद कर देश को भयाक्रांत और अपराधों का संजाल बनाकर रख दें उन पर लगाम लगाना बहुत ही आवश्यक है। संविधान संशोधन के माध्यम से इस विधेयक को लाकर नौंवी अनुसूची में रखकर इसे न्यायिक समीक्षा से भी बाहर किया जा सकता है।
संसद जिस दिन चाहे उस दिन से ही बच्चों के नैतिक मन को कुप्रभावित करने वाली सामग्री दिखना ही बंद हो जाये। इसके लिए एक कमेटी बनाई जा सकती है कि किस-किस प्रकार की सामग्रियां बच्चे के नैतिक मन को कुप्रभावित करती हैं जिससे इन पर आसानी से पाबंदी लगाई जा सके। साथ ही सरकार को शिक्षा के हर चरण में नैतिक मूल्यों से संबंधित कुछ टापिक या पूरे विषय के रूप में ही इसे रखना चाहिए और सभी प्रकार के शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों में इस विषय को अनिवार्य रूप से होना चाहिए। शिक्षक भी एक बेहतर भूमिका निभा कर देश और समाज को बेहतरीन बना सकते हैं। उन्हें खुद भी नैतिक रहते हुए बच्चों में नैतिक मूल्य विकसित करने चाहिए। शिक्षकों में भी विषय ज्ञान के अलावा नैतिकता का भी गुण अनिवार्य रूप से होना चाहिए।
मां-बाप और परिवार के सदस्यों को अपने बच्चों को नैतिक मूल्यों की जानकारी और महत्व को समझाने के लिए प्रतिदिन ही समय देना होगा। दुलार के अलावा आवश्यकता अनुसार उपहार और दंड की प्रक्रिया भी अपनानी होगी। अपने बच्चों की आदतों पर नज़रें भी रखनी होंगी। बस हमारे और सरकार के इस थोड़े लेकिन समेकित प्रयास से ही हम सब एक शानदार जीवन जीने की महान उपलब्धि को पा सकते हैं।
कर्तव्य जो निभा लें हम सभी सही दिशा में।
जन्नत सी खुशहाली होगी इस अवनि की फिज़ा में।।