हिमालय की गोद में बसा कैलाश पर्वत, जिसे भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है, न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक ऐसी पहेली भी जो आज तक अनसुलझी है। इसकी ऊंचाई मात्र 6,638 मीटर है—माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) से करीब 2,210 मीटर कम। एवरेस्ट पर हजारों पर्वतारोही चढ़ चुके हैं, लेकिन कैलाश की चोटी पर इंसानी कदम आज तक नहीं पड़ सका। क्यों? क्योंकि यहाँ प्रकृति, विज्ञान और दिव्य शक्ति का ऐसा संगम है कि हर कोशिश नाकाम हो जाती है। यह लेख उन चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर करता है जहाँ वैज्ञानिक हाथ खड़े कर चुके हैं, और आस्था विजयी होती दिखती है।
भौगोलिक दुर्गमता: मौत की सीधी ढलानें
कैलाश की भौगोलिक संरचना ही इसे अभेद्य बनाती है। एवरेस्ट की ढलानें क्रमिक हैं, जहाँ आधार शिविर से चोटी तक का रास्ता धीरे-धीरे कठिन होता जाता है। लेकिन कैलाश की चोटियाँ पिरामिड जैसी हैं लगभग 70-80 डिग्री की खड़ी ढलानें, जो चढ़ाई को असंभव बना देती हैं। ये ढलानें सदियों से जमी बर्फ और हिमनदों से ढकी हैं, जो हर कदम पर फिसलन पैदा करती हैं।
वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि कैलाश के आसपास का तापमान -40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है, और ऑक्सीजन स्तर मात्र 40% रह जाता है यहाँ तक कि निचले इलाकों में। 2022 में एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण टीम ने ड्रोन से मैपिंग की कोशिश की, लेकिन उच्च हवाओं (150 किमी/घंटा से अधिक) ने उपकरणों को उड़ा दिया। पर्वतारोही रेनहोल्ड मेस्नर, जिन्होंने एवरेस्ट बिना ऑक्सीजन चढ़ा, ने 1980 में कैलाश की परिक्रमा की लेकिन चोटी चढ़ने से इनकार कर दिया, कहते हुए: “यह जगह इंसान के लिए नहीं बनी।” भौगोलिक रूप से, यह पर्वत एक प्राकृतिक किला है जहाँ हर रास्ता मौत की ओर ले जाता है।

असामान्य चुंबकीय क्षेत्र: कम्पास की हार
कैलाश के रहस्यों में चुंबकीय अनियमितता सबसे हैरान करने वाली है। सामान्य पर्वतों पर कम्पास उत्तर दिशा दिखाता है, लेकिन कैलाश के 5-10 किलोमीटर दायरे में यह घूमने लगता है या पूरी तरह बंद हो जाता है। रूसी वैज्ञानिकों की 2019 की एक रिपोर्ट (जर्नल ऑफ जियोमैग्नेटिज्म में प्रकाशित) में पाया गया कि यहाँ पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र 10-15 गुना मजबूत और उल्टा है जैसे कोई विशाल मैग्नेट नीचे दबा हो।
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यह अनियमितता जीपीएस, सैटेलाइट इमेजिंग और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को प्रभावित करती है। 2007 में एक चीनी अभियान टीम के सदस्यों ने बताया कि उनके रेडियो और घड़ियाँ रुक गईं। नासा के सैटेलाइट डेटा से भी पुष्टि होती है कि कैलाश के ऊपर आयनोस्फियर में असामान्य विकिरण है, जो एवरेस्ट जैसे अन्य पर्वतों में नहीं देखा जाता। वैज्ञानिक इसे “जियोमैग्नेटिक एनोमली” कहते हैं, लेकिन कारण अज्ञात है। क्या यह प्राकृतिक है या दिव्य हस्तक्षेप? विज्ञान यहाँ चुप है।

रहस्यमयी ऊर्जा और त्वरित बुढ़ापा: जीवित पर्वत की सजा
स्थानीय तिब्बती और हिंदू मान्यताओं के अनुसार, कैलाश “जीवित” है यह भगवान शिव की ऊर्जा से脈动 करता है। जो कोई अनधिकार चढ़ाई की कोशिश करता है, उसे “शाप” मिलता है। वैज्ञानिक दृष्टि से, कई अभियानकर्ताओं ने असामान्य अनुभव रिपोर्ट किए: बालों का सफेद होना, नाखूनों का तेजी से बढ़ना, और शरीर का 10-15 साल बूढ़ा हो जाना मात्र कुछ दिनों में।
1960 के दशक में एक सोवियत टीम के चार सदस्यों ने चोटी की ओर प्रयास किया; वापस लौटने पर उनके बाल सफेद हो चुके थे और वे बीमार पड़ गए तीन की मौत हो गई। 1999 में एक भारतीय पर्वतारोही दल ने परिक्रमा के दौरान सदस्यों में त्वरित बुढ़ापे के लक्षण देखे, जिसे बाद में “रेडिएशन एक्सपोजर” से जोड़ा गया। हाल के अध्ययनों में कैलाश के आसपास उच्च स्तर का प्राकृतिक रेडियम और यूरेनियम पाया गया, जो कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाता है। लेकिन क्यों सिर्फ कैलाश? वैज्ञानिक कहते हैं, “यह एक अनसुलझा बायोलॉजिकल मिस्ट्री है।” तिब्बती लामा कहते हैं, “यह शिव की ऊर्जा है जो अयोग्य को दंडित करती है।”
धार्मिक संरक्षण और मानवीय प्रयासों की विफलता
चीन सरकार ने 2001 से कैलाश चढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया, इसे धार्मिक संवेदनशीलता का हवाला देकर। लेकिन उससे पहले भी कोई सफल नहीं हुआ। मिलारेस्पा, 11वीं सदी के तिब्बती योगी, एकमात्र हैं जिन्होंने कथित तौर पर चोटी चढ़ी लेकिन वह चमत्कार था, न कि सामान्य चढ़ाई। आधुनिक ड्रोन और रोबोटिक्स की कोशिशें भी विफल रहीं; 2023 में एक जापानी ड्रोन क्रैश हो गया, चुंबकीय हस्तक्षेप से।
कैलाश चार प्रमुख नदियों (सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, करनाली) का उद्गम है और बोन, हिंदू, जैन, बौद्ध धर्मों का केंद्र। यहाँ की ऊर्जा “एक्सिस मुंडी” मानी जाती है विश्व की धुरी।
आस्था की जीत, विज्ञान की सीमा
कैलाश पर्वत साबित करता है कि दुनिया में कुछ रहस्य ऐसे हैं जहाँ विज्ञान की पहुंच सीमित है। भौगोलिक कठिनाई, चुंबकीय विचलन, और जैविक प्रभाव ये सब मिलकर इसे इंसान की पहुंच से बाहर रखते हैं। शायद यह शिव की इच्छा है कि उनका निवास अछूता रहे। जैसा कि एक तिब्बती कहावत है: “कैलाश चढ़ना नहीं, बल्कि परिक्रमा से मोक्ष मिलता है।” यह पर्वत हमें सिखाता है कुछ जगहें पूजा के लिए हैं, विजय के लिए नहीं। विज्ञान हाथ खड़े कर चुका है; अब आस्था का समय है। – प्रस्तुति : सुशील कुमार







