गौतम चक्रवर्ती
भारत और चीन की सीमा पर लगातार 2020 से चला आ रहा गतिरोध दोनो देशों के मध्य कोर कमांडरों के बीच 16वें दौर की बातचीत 8 सितम्बर के दिन संपन्न होने के बाद एक साझा बयान जारी करते हुए इस बात पर सहमती व्यक्त कि गई कि दोनों देशों की टुकड़ियां गोगरा-हॉटस्प्रिंग (पेट्रोलिंग पिलर-15) इलाक़े से पीछे हटेंगी।
चीन लद्दाख क्षेत्र के गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स से पीछे हटना शुरू कर भले कर दिया हो, लेकिन यदि हम चीन के पूर्व इतिहास में झांके तो उसकी कथनी और करनी में बहुत बड़ा अंतर होता है। इसलिए उस पर एकदम से विश्वास करना भी बहुत बड़ी मुसीबत को दावत देने जैसी बात है। देश के पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध 5 मई, 2020 को पैंगोंग झील क्षेत्रों में एक खूनी विवाद के बाद शुरू हुआ था।
वैसे हम यहां आपको बता दें कि वर्ष1962 में जब भारत और चीन के मध्य युद्ध हुआ था, उस समय चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के आधे से अधिक भाग पर अपना कब्ज़ा जमा लेने के बावजूद चीन की ओर से एकतरफ़ा युद्ध विराम करने की घोषणा कर उसने अरुणाचल के उस हिस्से को छोड़ दिया था। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार चीन ने ऐसा क्यों किया?
इस प्रश्न के उत्तर में सामरिक मामलों के जानकारों का कहना हैं कि वर्ष 1962 का चीन आज जैसा शक्तिशाली देश नहीं था, इसलिए उसने युद्ध के तुरंत बाद स्वयं को पीछे खींच लेने में अपनी भलाई समझी।
आजकल जब चीन जब- तब अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता रहता है तो आख़िरकार 1962 की लड़ाई के दौरान वह पीछे क्यों हटा? यदि वह चाहता तो युद्ध के बाद भी उस पर अपना कब्ज़ा जमाए रह सकता था।
इसीलिए चीन और भारत सीमा के पास चीन, भारत के हजारों किलोमीटर हिस्से पर जब -तब अपना दावा करता रहता है।
दरअसल पूर्वी लद्दाख के इस क्षेत्र में चीन के साथ मई 2020 से ही लगातार तनाव बना हुआ है। वहीं चीन अब अरुणाचल से सटी सीमा पर भी अपनी ओर पक्का निर्माण कार्य करने लगा है। इस जगह पर दोनों पक्षों के मध्य पिछले 2 वर्षों से अधिक समय से गतिरोध चला आ रहा था, लेकिन भारत और चीन के मध्य 16वें दौर की बातचीत संपन्न होने के बाद एक नया मोड़ आया है। आपको याद दिला दें कि भारत और चीन के मध्य जुलाई 2020 के बाद से अभी तक 20 बार समझौते पर वार्ता हो चुकी है, लेकिन आज तक पूर्व स्थिति बनी हुई थी।
भारत और चीन आपस में युद्ध भले ही नहीं करना चाहते हो, लेकिन शांति भी बहाल नहीं हो पाई हैं।
जैसा कि हमेशा से चीन की आक्रामकता दुनिया के लिए एक समस्या बनी हुई है। जिसके मद्देनजर भारत ने भी यह घोषणा की है कि वह पूर्व काल की बेड़ियों को तोड़ने का भरसक कोशिश करता रहेगा।
भारत के विदेश मंत्री के साथ चीन के वांग यी के बीच बैठक होने के बावजूद भारत और चीन के मध्य आज भी दोनो तरफ के रिश्तों में संसय पूर्ण स्थिति कायम है क्यूंकि भारत का यह कहना सही भी है कि चीन ने सीमा पर बने मौजूदा समझौते का उल्लंघन किया है।
मौजूदा स्थिति के संरचनात्मक तर्कों, दावों के उलट दावों की नैतिकता से हट कर यह देखने की आवश्यकता है कि भारत और चीन आज इस अनिश्चितता पूर्ण स्थिति में आकर क्यों खड़े है? भारत चीन के मध्य कोर कमांडर स्तर की बैठक में लिए गए आपसी सहमति के अनुसार, इस क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों ने गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स पीपी-15 से वापसी करना शुरू अवश्य कर दिया है, लेकिन अब यह देखना है कि चीन अपनी बात पर कब तक स्थिर रह पाता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के एक बयानुसार 8 सितंबर सुबह 08:30 बजे से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटना शुरू हो चुकी थीं और 12 सितंबर दिन सोमवार तक यह समस्त प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी हैं।