राजा राममोहन राय को जयंती पर नाट्यांजलि: नारी को सशक्त बनाने वाले सात सृजनसेवी हुए सम्मानित
लखनऊ, 23 मई। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रसमंच योजना के अंतर्गत सृजन फाउंडेशन द्वारा राजा राम मोहन राय की 251वीं जयंती के उपलक्ष्य में वाल्मीकि रंगशाला में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के संग बिम्ब सांस्कृतिक समिति द्वारा नाटक ’हे मोहन’ का मंचन एवं ’का फ़ॉर की’ अवार्ड का आयोजन किया गया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को बंद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। नाटक संदेश दे गया कि साहस से किसी भी कुप्रथा या बुराई पर विजय पायी जा सकती है हैं।
इस अवसर पर ‘का फ़ॉर की अवार्ड’ से महिलाओं के विकास, सशक्तिकरण और उत्थान के लिए कार्य कर रहे पुरुष समाजसेवियों में अधिवक्ता शुभम द्विवेदी को दलित महिलाओं को अधिकार दिलाने; वैभव गौर, हेमंत भसीन व तरुण कुमार को माहवारी जागरूकता, अजय पटेल को बालिका शिक्षा, सौरभ निगम व प्रखर निगम को ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता के लिए से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि ममता चेरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष और क्षेत्रीय उपाध्यक्ष अवध क्षेत्र भाजपा राजीव मिश्रा, विशिष्ट अतिथि एजीएम एसबीआई अनूप श्रीवास्तव, कार्यक्रम अधिकारी संस्कृति विभाग कमलेश कुमार पाठक और सृजन फाउंडेशन के संरक्षकों स्मिता श्रीवास्तव, नीमा पंत, अमित श्रीवास्तव, अभिषेक मोहन, रचना मिश्रा, दिलीप यशवर्धन द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया।
इशिका श्रीवास्तव ने बताया कि बंगाल से सती प्रथा खत्म करवाने में राजा राम मोहन राय की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जब उनकी भाभी को उनके भाई की मृत्यु के बाद सती होना पड़ा तो उन्होंने लोगों को इस बुरी प्रथा के खिलाफ जागरूक करना शुरू किया। नतीजतन लार्ड विलियम बैंटिक ने 4 दिसंबर 1829 को सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दंडनीय घोषित कर दिया। नंदिनी खरे ने ’भजे ब्रजे कमंण्डलं…’, जया सिंह ने शिव वन्दना ’नागेन्द्र हाराय…’ पर प्रस्तुति दी। प्रियंका बिष्ट द्वारा पहाड़ी गाने ’पहाड़ों की बाना के भली छाजी रे….’ पर नृत्य प्रस्तुत किया गया। अमित कुमार ने ओ मुरली वाले ओ बंसी वाले, प्रणव तिवारी ने देशभक्ति के गाने जग्गा जितेया पर नृत्य प्रस्तुत किया। इशिका ने नारी सशक्तिकरण के गाने योद्धा बन गयी रे पर जोरदार प्रस्तुति से सबमें जोश भर दिया।
राम किशोर नाग के लिखे और महर्षि कपूर द्वारा निर्देशित नाटक ’हे मोहन’ में बिम्ब सांस्कृतिक समिति के कलाकारों राहुल गौतम, बृजेशकुमार चौबे, इशिता वार्ष्णेय, डाली गौतम, दीपक पाल और स्वयं निर्देशक ने राजा राममोहन राय के कृतित्व को नाट्य प्रस्तुति में जीवन्त कर दिया। नाटक में तत्कालीन हिन्दू समाज और बंगाल में व्याप्त दो बड़ी कुरीतियों बाल विवाह और सती प्रथा पर चोट की गयी है। नाटक की कहानी के अनुसार निम्न मध्यम दम्पति की पांच साल की बेटी मां शनि के विरोध के बावजूद बाल विवाह का शिकार बन जाती है। शनि अल्पायु में विवाह अपराध मानती है, परन्तु पिता शारदा इस पाखंड और आडम्बर को नैतिक बता कर अपनी पुत्री का विवाह करा देता है।
पुत्री के ससुराल जाने पर मां की मर्मान्तक पीड़ा रिसती रहती है। दस वर्ष बीतते बीतते पुत्री का पति तपेदिक से असमय काल के गाल में चला जाता है। उनकी बेटी को भी पति के साथ चिता में जीवित जला दिया जाता है। इस अप्रत्याशित दुख का पहाड़ टूटने से शनि और शारदा विक्षिप्त हो जाते हैं। इस घटना के बाद जब राजा राम मोहन राय इग्लैंड में राजा अकबर की पेंशन बढ़वाने के लिए अर्जी देने जाते हैं, तभी उन्हें समाचार मिलता है कि उनके बड़े भाई जगमोहन गम्भीर रूप से बीमार हैं। उन्हें तुरन्त अपने शहर वापस लौटना पड़ता है। उनके पहुंचते ही उनके बड़े भाई का देहान्त हो जाता है। उनकी भाभी को भी जब सती करने की बात आती है तो वो विरोध करते हैं पर असफल रहते हैं। वे प्रतिज्ञा करते है कि ब्रह्म समाज स्थापित कर मैं इस प्रथा को किसी भी तरह समाप्त कर दूगां। आंदोलन की गंभीरता के कारण लार्ड विलियम बेंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 को अन्ततः इस प्रथा को समाप्त कर दण्डनीय घोषित कर दिया। इस तरह राजा राममोहन राय ने एक अमानवीय प्रथा को सदैव सदैव के लिए समाप्त करवाया।
आयोजन के अंत में दिव्या शुक्ला, अनीता वर्मा, अंजू सिंह, डॉ वंदना साहू, ज्योति खरे, अर्चना सक्सेना, मोहित, अपूर्वा, अनाहिता, श्वेता, सलोनी, श्रुति आदि की उपस्थित में सृजन फाउंडेशन अध्यक्ष डा.अमित ने सभी का आभार व्यक्त किया।