Highlights:
- नौशाद संगीत डेवलपमेंट सोसाइटी की ओर से संगीतमय नाटक ‘हब्बा खातून’ का प्रभावी मंचन
- समाज सुधार में है रंगमंचीय गतिविधियों की अहम भूमिका : रजा मुराद
- काजल, जिया, अचला, असलम और मसूद को मिला नौशाद सम्मान
लखनऊ 6 नवंबर। हिंदी उर्दू साहित्यि अवार्ड कमेटी के स्वर्ण जयंती समारोह में अतहर नबी के उपन्यास घरौंदा के विमोचन के बाद कला मण्डपम प्रेक्षागृह कैसरबाग में काजल सूरी के लेखन-निर्देशन में नौशाद संगीत डेवलपमेण्ट सोससयटी की ओर से दिल्ली के कलाकारों ने कश्मीर की जून नाम से मशहूर रूमानी शायरा के जीवनवृत्त पर नाटक ‘हब्बा खातून’ का प्रभावी मंचन किया। इस अवसर पर उत्कृष्ट कार्य करने वाले कलाकारों को नौशाद सम्मान से अलंकृत भी किया गया।
आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर प्रख्यात अभिनेता रजा मुराद और महापौर संयुक्ता भाटिया ने रंगनेत्री काजल सूरी, अभिनेता जिया अहमद खान, अभिनेत्री अचला बोस, अभिनेता नवाब मसूद अबदुल्लाह और असलम खान को शाल, स्मृति चिह्न पुष्पगुच्छ देकर नौशाद सम्मान प्रदान किया। अस्वस्थ अचला बोस का सम्मान रंगमंच के प्रतिनिधि ने ग्रहण किया।
रंगमंचीय गतिविधियों के पीछे समाज सुधार की गहरी प्रशंसनीय भावनाएं छुपी होती हैं:
मौके पर रजा मुराद ने कहा कि रंगमंचीय गतिविधियों के पीछे समाज सुधार की गहरी प्रशंसनीय भावनाएं छुपी होती हैं। सामयिक समस्याओं को साहित्यकार-फनकार नए ढंग से देखकर उनमें प्राचीन और आधुनिकता का मेल कराते हुए समाज को सुसंस्कृत और शिक्षित बनाते हैं। अदबी और फनकारों से भरे शहर लखनऊ में कला और कलाकारों के सम्मान के नजरिये से कमेटी का ये 50 साला जश्न और अहम बन जाता है।
कश्मीर की खूबसूरती और सच्चे प्रेम पर आधारित नाटक हब्बा खातून एक शानदार और आकर्षण का ड्रामा है। नाटक में दिखाया गया है कि हब्बा खातून की जिंदगी और शायरी के संघर्ष को आकर्षक ढंग से पेश किया है। अपने समकालीन पुरुष शायरों के स्थापित शायरी के उसूलों के खिलाफ जाकर हब्बा खातून ने उर्दू शायरी मे रोमांटिक शैली को अपनाया। बुलबुले कश्मीर हब्बा खातून अपनी बेपनाह खूबसूरती के कारण जून अर्थात चंद्रमा के नाम से विख्यात थीं। 16वीं सदी की कश्मीर की वादी की मलिका हब्बा खातून कश्मीर की रोमांटिक शायरी की पहचान हैं। कश्मीर में एक पिरामिडनुमा पहाड़ी हब्बा खातून नाम से जानी जाती है। यहां राजा यूसुफ शाह चक हब्बा खातून से मिलते हैं और प्रेम में पड़कर शादी कर लेते हैं। समय के चक्र में वे बिछड़ जाते हैं।
राजा यूसुफ हब्बा के लाख मना करने के बावजूद अकबर से लड़ाई करने रवाना हो जाते हैं। विरह में हब्बा खातून समकालीन काव्य सिद्धांतों से अलग नये ढंग से दिल को छू लेने वाली शायरी रचकर बहुत लोकप्रियता हासिल करती हैं। नये तेवरों की उनकी मिठास भरी और मार्मिक शायरी आज भी प्रासंगिक शायरी आम लोगों के दिलों को छूती है।
कश्मीर घाटी की सभ्यता-संस्कृति को मंच पर रखती चार अंकों की इस लचीली और मशहूर संगीतमय प्रस्तुति में हब्बा खातून और यूसुफ का किरदार जीने वाली चांद मुखर्जी व शान्तनु सिंह के साथ इलमा-रचना यादव, साहिल-शिवम शर्मा, अब्दुल राथेर-रोहित राजपूत, ज़ालिम सास-जसकिरन चोपड़ा, समीर-लोकेश, वली अहद-आशीष वत्स, कमल-राहुल मल्होत्रा, नूर-नवज्योति, सूफी-ओजोस्विनी, पीर बाबा- जतिन बने थे। मंच पार्श्व के कार्यों को प्रोडक्शन कोऑर्डिनेटर रोहित मरोठिया, कोरियोग्राफर आस्था गुप्ता, कॉस्ट्यूम व मेकअप आर्टिस्ट एम राशिद, संगीतकार-दीनू शर्मा, प्रकाश सज्जाकार अजहर खान ने अंजाम दिया।
इस मौके पर डॉ.विक्रम सिंह, विजय श्रीवास्तव, राजा अवस्थी, इकबाल नियाजी, वरिष्ठ कला समीक्षक राजवीर रतन, वामिक़ खान, शायर हसन काज़मी, नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला, बिलाल नूरानी, जिया उल्लाह सिद्दीकी, रफी अहमद, यासिर जमाल और बीएन ओझा समेत अनेक रचनाकारों व कलाप्रेमियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।