नई दिल्ली । दुनिया भर के आर्थक विशेषज्ञ मंदी की आशंका जता रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर इस साल 2.8 फीसदी तक धीमी हो सकती है, जो 2023 में और भी घटकर सिर्फ 2 फीसदी रह जाएगी। यहां तक कि विश्व बैंक ने हाल ही में इस बात पर प्रकाश डाला कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कैसी है। विश्व बैंक ने बताया कि 1970 के दशक के बाद से दुनिया अपनी सबसे बड़ी मंदी का अनुभव कर रहा है।
इस वर्ष की शुरुआत के बाद से, जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, दुनिया गंभीर आपूर्ति की समस्या से जूझ रही है। साथ ही उर्जा लागत बढ़ने से भी कई देशों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऊर्जा की लागत बढ़ने पर उत्पाद की कीमतों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे मुद्रास्फीति का स्तर हर जगह रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। एक सामान्य नियम के रूप में, लगातार दो तिमाहियों में आर्थिक गिरावट मंदी के दौर का संकेत देती है। स्वाभाविक रूप से, इन अवधियों में मनी मैनजेमेंट मुश्किल है। ऐसे समय में, वरिष्ठ वित्तीय योजनाकार राजीव मेहरोत्रा कहते हैं, इन अवधियों के लिए व्यापक फाइनेंसियल मैनेजमेंट में कमाई, बचत, खर्च, इंवेस्टेमेंट, उधार और प्रॉपर्टी प्लान का ख्याल रखना शामिल है।
साथ ही यह भी कहा प्रॉपर्टी डिस्ट्रीब्यूशन रिसेशन-प्रूफ किसी के वित्तीय जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका मतलब है अपनी इक्विटी, डेट, रियल एस्टेट और गोल्ड निवेश को बांटना। यह डिस्ट्रीब्यूशन निवेशक के जीवन स्तर और जीवन लक्ष्यों के अनुसार मात्रा अलग-अलग हो सकती है। एक युवा निवेशक में उच्च जोखिम सहने की क्षमता होती है इसलिए इक्विटी में अधिक निवेश अनुकूल होता है। इसके विपरीत, एक सेवानिवृत्त व्यक्ति के लिए पूंजी संरक्षण प्रमुख उद्देश्य है।
हम हर दिन उपयोग की जाने वाली वस्तुओं से मंदी के प्रभाव का मोटे तौर पर आकलन कैसे कर सकते हैं? यहां बताया गया है कि कैसे लिपस्टिक, कचरा और डेटिंग साइट आपको मंदी के असर पर सोचने को मजबूर कर सकते हैं। हालांकि यह निर्णायक नहीं है। एनपीडी के आंकड़ों के अनुसार, 2022 की पहली तिमाही में लिपस्टिक की बिक्री में 48% की वृद्धि हुई। सामान्य तौर पर मेकअप की बिक्री 2022 के पहले 6 महीनों में 20% बढ़ी है। फर्म ने अपनी लिपस्टिक की बिक्री में भारी वृद्धि देखी। अधिक उत्पादन और खपत का अर्थ है अधिक वेस्ट निर्माण। चूंकि अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है, तय धारणा यह है कि लोग कम खर्च करेंगे, इसलिए कम वेस्ट उत्पन्न करेंगे। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इसे एक सटीक संकेतक के रूप में नहीं देखते हैं।