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दो कवितायेँ : हँसी
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गरीब की निश्छल हँसी को
चुपके से बाज़ार में
बेच दिया जाता है
उसे पता ही नहीं चलता
और, वे
सरकारी विज्ञापनों में
हँसते रहते हैं
हँसी
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कितने भी छाएं दुख के बादल
कितनी हो तकलीफ़ों की बारिश
मुस्कुराहट की धूप तो निकलती ही है
– आनंद अभिषेक