नवेद शिकोह
जो लोग कहते हैं कि ज़मीनी संघर्ष राजनीति की सफलता के रास्ते खोलता है, इनको याद दिलाने के लिए तमाम विरोधाभासी मिसालें हैं। जरूरी नहीं कि आप जनता के लिए काम करें, संघर्ष करें, आन्दोलन करें, सरकारों से लड़ें, जेल जाएं, लाठियां खाएं.. और इसके एवज़ में जनता आपको चुनाव जिता दे। या राजनीति की दुनियां में आपका कद बढ़ जाए।
राजनीतिक दल ऐसे जनसेवकों को एहमियत, टिकट या पद दें। ज़रुरी नहीं की ऐसा हो। शायद लोग ठीक ही कहते हैं कि राजनीति में आप कुछ करें या न करें राजयोग होगा तब ही आप सियासत में सिकंदर बन पाएंगे। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि झूठ, फरेब, ड्रामेबाजी, इवेंट, मीडिया मैनेजमेंट, जज्बातों को भड़काने और धर्म-जाति की राजनीति का हुनर किसी को भी बड़ा नेता बना देता है।
कुल मिलाकर सियासी मंजिल पाने के रास्तों का कोई मैप नहीं। यहां सफलता का कोई एक फार्मूला नहीं है। कब कहां कौन सा फार्मूला चल जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। कितना ही ज़मीनी संघर्ष और समाजसेवा करो, ज़रुरी नहीं कि जनता आपको स्वीकार करें !
आइए कुछ मिसालें पेश करते हैं हैं-
लखनऊ में एक नौजवान हैं इमदाद इमाम। जब सभ्य समाज में बेटा बाप की लाश उठाने को तैयार नहीं था तब कोरोना वायरस के आतंक के बीच इस नौजवान ने सैकड़ों कोरोना संक्रमित मुर्दे उठाए। दफनाए या उनका अंतिम संस्कार करवाया। निस्वार्थ भावना के अपनी कम आमदनी में भी जरूरतमंदों का पेट भरने का इंतेज़ाम भी किया।
इमदाद हुसैन साहब की इस अदभुत खिदमत की दुनिया में ख्याति गूंजी। लेकिन आम आदमी पार्टी के इस कार्यकर्त्ता को उनकी पार्टी ने ज़रा भी एहमियत नहीं दी। आम आदमी पार्टी ने यूपी में अपना संगठन तैयार करने की कोशिश की। आप ने यूपी के विधानसभा चुनाव में बमुश्किल प्रत्याशी ढूंढे। लेकिन जान की बाजी लगाकर कोरोना की लाशें उठाकर इंसानियत को इमदाद (मदद) देने वाले इमदाद को आम आदमी पार्टी ने न कोई एहमियत दी, न संगठन में जगह और न चुनाव लड़वाने के लिए टिकट दिया। जबकि इमदाद आप के सक्रिय कार्यकर्ता थे। इसके बाद इस जांबाज ने आप से इस्तीफा दे दिया।
इसी तरह यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कांग्रेस में जान फूंकने के लिए खूब ज़मीनी संघर्ष किया। कोरोना में पलायन करने वाले मजदूरों की मदद के लिए खूब लड़े। जनता के हक़ के लिए धरने-प्रदर्शन किए। लाठियां खाईं। दर्जनों बार जेल जाने का रिकार्ड क़ायम किया। लेकिन कांग्रेस बुरी तरह हारी। वो खुद भी चुनाव हारे। और हार की हताशा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उनसे अध्यक्ष पद छीन लिया।
सदफ रिज़वी लखनऊ मध्य से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ीं और बुरी तरह हार गईं। एनआरसी, सीएए के खिलाफ आंदोलन में क्रांतिकारी महिला के रुप में इनकी बड़ी पहचान बनीं थी। लखनऊ में सीएए, एन आर सी के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन में सदफ जब जेल गईं तो कांग्रेस महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे मुद्दा बनाया। अपने भाषणों में उनका जिक्र किया। खूब लड़ने वाला, कभी न डरने वाला महिला चरित्र करीब से देखकर ही शायद प्रिंयका ने यूपी चुनाव में लड़की हूं लड़ सकती हूं की थीम तय की। सदफ जब जेल में थीं तो प्रियंका खुद उनके घर गईं और छोटे बच्चों को तसल्ली दी। जेल से छुड़वाने और जमानत दिलवाने की पैरवी भी की।
सरकार ने सदफ को दंगाई बताकर चौराहों पर इनके पोस्टर लगाए थे, समाज के एक तबके खासकर मुस्लिम समाज ने लखनऊ पुलिस के इस कदम की खूब मजम्मत की। मुस्लिम समाज के लिए लड़ने वाली इस महिला उम्मीदवार को मुस्लिम बाहुल्य लखनऊ मध्य विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत मुसलमानों ने भी वोट नहीं दिया।
ऐसे में ये बात पूरे विश्वास के साथ नहीं कही जा सकती कि जमीनी संघर्ष से सियासत में कद बढ़ता है और ऐसा संघर्ष चुनाव जिता सकता है।
कई ऐसे बुरे वक्त पड़े जब एक शख्स हीरो की तरह मदद करता दिखा। जबरदस्त बाढ़ की तबाही में बिहार में पीड़ित जनता के लिए संघर्ष करने और मदद करने वाले पप्पू यादव का चुनाव हारना, कोरोना की तबाही में मसीहा बनने वाले अभिनेता सोनू सूद की बहन का पंजाब में चुनाव हारना.. बहुत सी मिसालें हैं।
आपको याद होगा कि मणिपुरी की नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला भी चुनाव हार गई थी और फिर उन्होंने समाजसेवा छोड़कर अपना घर बसा लिया था। इसलिए जनता के लिए काम करने वाले श्री कृष्ण का उपदेश याद रखें- कर्म करते रहो फल की चिंता मत करो !