हर विद्वता का स्वामी न कोई था उससा जग में।
देव ,असुर, ग्रह, नक्षत्र सब थे उसके वश में।।
पा न सका विष्णु कृपा, जलता रहा इस जग में।
ज्ञान, भक्ति, तप, ताकत, यश वैभव भी रहे व्यर्थ में।।
करता है बुराई का संहार जो खुद के अंतर्मन से।
दस इंद्रियों को हर के करता जो अपने वश में।।
राम के आदर्शों का है अनुगामी जो इस जग में।
बढ़ता नारायण पथ पर वो बिना किसी तप के।।
देवों के लिए भी दुर्लभ, है वो कठिन पथ ये।
विष्णु कृपा की आर्द्रता बरसती निर्मल मन में।।
दस इंद्रियों को हर के करके अपने वश में।
बुद्ध भी कहलाते हैं विष्णु अवतार इस जग में।।
ज्ञान, भक्ति, तप, ताकत, फीके हैं एक निर्मल मन से।
बतला गये यह बात प्रभु अपने हर अवतरण में।।
- राहुल गुप्ता