राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सपा के लिए यह हो सकता है घाटे का सौदा
उपेन्द्र नाथ
अपना कुनबा बढ़ाने के चक्कर में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भविष्य में अपनी पार्टी में अंदरूनी कलह को तेज बढ़ाने जा रहे हैं। बसपा सहित दूसरी पार्टियों से निष्कासित पूर्व विधायक, वर्तमान विधायकों को अपने पार्टी में शामिल करने के बाद उन्हें टिकट मिलते ही पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ेगी। यह सुगबुगाहट अभी से शुरू हो गयी है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें भाजपा और कांग्रेस में तो यह संभव है लेकिन किसी क्षेत्रीय पार्टी में इस तरह करना अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार अशोक सिंह राजपूत का कहना है कि क्षेत्रीय पार्टियों में लोगों का व्यक्तिगत हित ज्यादा मायने रखता है। इस कारण यहां जो भी जुड़ता है, उसकी सोच व्यक्तिगत हितों पर आधारित होती है। सपा यदि चुनाव के समय अपने मजबूत आधार वाले जगहों से भी बाहरी लोगों को टिकट देती है तो अपने कार्यकर्ताओं को नाराज करेगी। इससे उसके अपनों के बेगाने होने का खतरा बढ़ेगा।
राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि समाजवादी पार्टी हमेशा अपने लोगों पर विशेष ध्यान देने के लिए जानी जाती थी लेकिन अब अखिलेश यादव उस मानसिकता से अलग दिखने लगे हैं। अब वे भी राजनीति को राजनीतिक दृष्टि से देखते हैं। इस कारण अब उनके साथ भी वैसे स्थायी लोगों की कमी दिखने लगी है, जैसे मुलायम सिंह के जमाने में दिखती थी। उनके समय में कार्यकर्ता उनके लिए मर-मिटने को तैयार रहता था।
उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव द्वारा दूसरी पार्टियों से निष्कासित लोगों को लाना चुनाव पर कितना असर डालेगा, यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन यह सत्य है कि इनके लोग इनसे बिदक जाएंगे। इससे वे भीतरघात भी करेंगे।
यह बता दें कि बसपा से डेढ दर्जन पूर्व विधायक या वर्तमान विधायक जो निष्कासित किये जा चुके हैं, उन्होंने साइकिल की सवारी शुरू कर दी है। भाजपा के सीतापुर के विधायक ने भी सपा ज्वाॅइन कर लिया है।