हवाओं को हिरासत में लिया करती हैं ये ग़ज़लें।
तभी उम्मीद का दीपक यहाँ बेख़ौफ़ जलता है।
जहाँ पीयूष निष्काषित – गरल की उम्र लम्बी है ।
वहाँ बेहद जरूरी है कोई सुकरात लिख देना।
अपनी प्यास अभागी लेकर भटका, इसका रंज नही कुछ।
तुझको प्यासा देख दुखी हूँ, मुझको सागर देने वाले।
जहाँ से हम की गुजरे तुम्हारी आरजु बनकर।
उन्हीं गलियों से कुछ सुहानी बातें मांग लेंगे हम।
जब कि खिदमत में तिजोरी की लगा था आदमी।
हम यहाँ बस चंद गज़लें-शायरी जीते रहे।
होठों पे हंसी, आखों में पानी छोड़ जायेंगे।
अब इतना तय है कोई कहानी छोड़ जायेंगे।
- जुलूस मौसम के, कमल किशोर भावुक