बच्चों को तीसरी लहर से बचाने के साथ अन्य तमाम व्याधियों से बचाने में स्वर्ण प्राशन होगा बड़ा मददगार, बुंदेलखंड के अतर्रा और झाँसी में बच्चों के लिए निःशुल्क स्वर्ण प्राशन देकर गरीब बच्चों की भी इम्यूनिटी करेंगे मजबूत
- राहुल कुमार गुप्त
भारत में कोरोना की दूसरी लहर से चहुँओर मौत का मातम रहा। एक ही परिवार में न जाने कितनी मौतें! सुनकर ही रूह काँप जाती है। अब तीसरी लहर को लेकर लोगों में बड़ा भय व्याप्त है। क्योंकि महामारी विशेषज्ञों ने बताया कि जल्द ही तीसरी लहर आयेगी जो बच्चों के लिए खतरा बन सकती है। भारत के लोग सब सहन कर सकते हैं पर अपने बच्चों को लेकर सब बड़े ही संवेदनशील हैं। इस कारण शासन-प्रशासन भी बड़ी ही जिम्मेदारी के साथ इस तीसरी लहर से बचने के लिए समुचित इंतजाम में लगे हुए हैं, लेकिन इस बार स्थितियाँ बहुत ही भिन्न होंगी।
क्योंकि कोरोना वैक्सीन को सिर्फ 16 साल से अधिक उम्र के लोगों पर ही टेस्ट किया गया है। इसलिए इस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों को यह वैक्सीन न लगाने की सलाह दी है। रेमडेसिविर इंजेक्शन भी दुष्प्रभाव डाल सकता है। ऐसे में सरकार को अन्य विकल्पों की ओर भी ध्यान देना होगा।
हमारी खुद की भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, इस महामारी काल में वरदान साबित हुई है।
बुंदेलखण्ड राजकीय आयुर्वेदिक कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पवन कुमार विश्वकर्मा तथा आयुर्वेदिक रिसर्च सेंटर ग्वालियर में अनुसंधान अधिकारी डॉ. दीपा शर्मा ने बुंदेलखंड के कई गंभीर कोविड मरीजों को आयुर्वेद पद्धति से पूर्णतः स्वस्थ किया है। मानव सेवा में लगी यह चिकित्सक दंपति अब तीसरी लहर के खिलाफ मोर्चा संभाले है।
अतर्रा व झाँसी में बच्चों को इस लहर से बचाने के लिये उनके इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए निःशुल्क औषधि वितरण करते हुए आयुर्वेद पद्धित के अनुसार आहार-विहार की भी जानकारी दे रहे हैं। जिससे बच्चे केवल कोरोना से ही लड़ने के लिए सजग नहीं होंगे वरन् सभी व्याधियों से लड़ने के लिए मजबूत हो जायेंगे।
डॉ. पवन कुमार विश्वकर्मा व डॉ. दीपा शर्मा ने तीसरी लहर से ही बचाव के लिए जानकारी नहीं दी बल्कि बच्चों के संपूर्ण विकास और सभी व्याधियों से बच्चे कैसे बच सकते हैं इसकी भी महत्वपूर्ण जानकारी दी। इनकी दी इस महत्वपूर्ण जानकारी से हम तीसरी लहर से बिना कुछ खोए आसानी से लड़कर जीत सकते हैं, तथा भविष्य में आने वाले अन्य संक्रमण के प्रति भी आयुर्वेद की इस महत्वपूर्ण जानकारी से हम खुद को और अपनों को स्वस्थ रख सकते हैं।
कैसे बचें मल्टीसिस्टम इंफ्लामेंट्री सिंड्रोम से:
डॉ. पवन कहते हैं कि महामारी विशेषज्ञों के अनुसार तीसरी लहर में बच्चे, कोरोना से हो सकता है कि गंभीर रूप से प्रभावित न हों लेकिन उसके कुछ दिनों बाद बच्चे मल्टी सिस्टम इंफ्लामेट्री सिंड्रोम (एमआईएस-सी) जैसी कई गंभीर परेशानियों से घिर सकते हैं। साधारण शब्दों में एक साथ कई बीमारियों का एक शरीर में पनप जाना ऐसे में बच्चों को बहुत तकलीफ हो सकती है। सही इलाज न मिलने पर जान का खतरा भी हो सकता है। एलोपैथिक ट्रीटमेंट में वयस्कों की तरह बच्चों में इम्युनिटी लेवल तेजी से नहीं बढ़ता है। यह स्थिति लगभग 85 प्रतिशत मामलों में हार्ट को प्रभावित कर सकती है जो कि बहुत खतरनाक है।
ऐसी ही स्थितियों से बचने के लिए हजारों साल पहले आयुर्वेद में कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत बताये गये हैं जो पूरी तरह से तथ्यात्मक और अनुभवपरक हैं। जहाँ एलोपैथ में केवल औषधियों के बारे में महत्व दिया गया है वहीं आयुर्वेद में औषधियों के अलावा आहार और विहार के बारे में भी जोर दिया गया है।
मल्टीसिस्टम इंफ्लामेट्री सिंड्रोम जैसी गंभीर बहुरोग के बारे में आयुर्वेद में है कि औषधि के साथ जो परहेज चलता है औषधि के बंद होने के लगभग दो हफ्ते वह परहेज और चलता रहे। यानि कि आहार-विहार पर भी पूरा ध्यान देना होगा। इस दौरान सुपाच्य भोजन, समय-समय से निद्रा लेना और किसी भी वेग को नहीं रोकना चाहिए या उत्सर्जन क्रियाओं को नहीं रोकना चाहिए। जिससे वह रोग तभी जड़ से समाप्त होता है जो जल्द दोबारा आपके शरीर में कोई प्रभाव नहीं दिखा सकता। इसी पद्धति से हम इस मल्टीसिस्टम इंफ्लामेंट्री सिंड्रोम जैसी गंभीर परेशानी से भी बच सकते हैं।
क्या बोलें डॉक्टर : बच्चों को सुरक्षित और सजग कर सकते हैं
“हम कोरोना की तीसरी लहर के आने से पहले ही अपने बच्चों को सुरक्षित और सजग कर सकते हैं। आहार-विहार और औषधि में स्वर्ण प्राशन की कुछ मात्रा चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार लगातार महीने भर देकर उन्हें समस्त प्रकार की व्याधियों से बचा सकते हैं।’’
– डॉ. दीपा शर्मा, अनुसंधान अधिकारी, आयुर्वेदिक रिसर्च सेंटर ग्वालियर, मध्य प्रदेश
आयुष चिकित्सकों को भी प्रासेज की सुविधा देनी चाहिए:
“डाइग्नोसिस की सारी प्रासेज केवल एलोपैथ तक सीमित न की जायें। आयुष चिकित्सकों को भी इस प्रासेज की सुविधा दे देनी चाहिए जिससे वो अपनी पद्धतियों पर और निखार ला कर मानव कल्याण के लिये बेहतरीन से बेहतरीन कदम उठा सकें।’’
– डॉ. पवन कुमार विश्वकर्मा ( आयुर्वेद विशेषज्ञ) असिस्टेंट प्रोफेसर (बाल रोग विभाग)
बुंदेलखंड राजकीय आयुर्वेदिक कालेज झाँसी, उत्तर प्रदेश।
बच्चों के लिए स्वर्ण प्राशन किसी चमत्कार से कम नहीं:
आयुर्वेद में ही अनुसंधान अधिकारी डॉ. दीपा शर्मा व आयुर्वेद विशेषज्ञ तथा बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पवन ने बताया कि स्वर्णप्राशन एक आयुर्वेद में बच्चों के लिए सबसे बेहतर प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करने वाली औषधि है। उन्होंने बताया कि काश्यप संहिता के लेहन अध्याय में स्वर्ण प्राशन के उपयोग तथा उसके बनाने का वर्णन है। उसमें बताया गया है कि यदि एक माह तक बच्चों को स्वर्ण प्राशन की कुछ मात्रा चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार लगातार दी जायें तो बच्चे में सभी व्याधियों से लड़ने की शक्ति पैदा हो जाती है। वहीं इस संहिता में ये भी बताया गया कि यदि स्वर्ण प्राशन ब्राह्मीघृत के साथ दो बूंद लगातार छह माह तक दे दें बच्चों को तो उनका मानसिक विकास बहुत तेजी से बढ़ता है। केवल एक बार सुनकर या देखकर वो चीजें कई सालों तक के लिये याद हो जाती हैं।
इसी का इस्तेमाल पूर्वांचल के जेई (जापानी इंसेफ्लाइटिस) पीडि़त इलाकों में भी किया गया, जिन बच्चों को स्वर्ण प्राशन दिया गया वो बच्चे जेई से अप्रभावित रहे। जब हमारे पास कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने के कोई विकल्प सामने नहीं आ रहे तो हम बच्चों के इम्युन सिस्टम को ही इतना मजबूत कर देंगे कि कोविड-19 की यह लहर बच्चों को छू भी नहीं सकेगी। चूँकि यह औषधि थोड़ी महँगी जरूर है इसीलिए यह गरीब बच्चों तक भी पहुँच सके इसके लिए यह औषधि निःशुल्क उपलब्ध कराने की तैयारी है। अतर्रा में यह कार्य रविवार से शुरू हो जायेगा तथा झाँसी में यह कार्य चल रहा है। साथ ही बच्चों की प्रकृति के हिसाब से और भी प्रभावी औषधियाँ जोड़ी जा सकती हैं। क्योंकि आयुर्वेद में प्रकृति का सिद्धांत भी देखना जरूरी होता है जिसमें जिस प्रकृति की अधिकता होगी उस हिसाब से भी औषधियाँ और फायदेमंद साबित होती हैं। तात्कालिक लाभ के लिये आयुर्वेद में उचित रस औषधियों का प्रयोग बहुत लाभकारी है।
आहार-विहार के नियमन से भी बढ़ा सकते हैं अपनी प्रतिरोधक क्षमता:
सामान्यतः बच्चों में कफ की प्रधानता होती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से बच्चों में कफ के दूषित होने के ज्यादा चाँस होते हैं। जिसके कारण बच्चे जल्द ही कफज विकार (सर्दी, जुखाम, खाँसी, बुखार, श्वसन संबंधी बीमारी आदि) तथा पुअर डाइजेशन के शिकार होते हैं। दिन में सोने से भी कफ दूषित होता है। आयुर्वेद में प्राकृत कफ को ही बल कहा गया है। प्राकृत कफ बढ़ाने के लिये ऐसे आहार-विहार और औषधि का प्रयोग करें जिससे व्याधियाँ शांत की जा सकें।
आहार: हल्का होना चाहिए, सुपाच्य होना चाहिए जैसे चोकर मिश्रित आटे की पतली रोटियाँ, मूंग दाल, लोकी, तरोई, द्राक्षा (बड़ी किशमिश) अंगूर, किशमिश, सहजन की फली, नारियल का पानी, हल्की मात्रा में देशी घी, और सरसों का तेल आदि साथ ही भोजन मन से किया जाना चाहिए।
बचाव- ठंडा पानी, दही, उड़द, मैदा, मैदा की बनीं चीजें, रिफाइंड आयल, लाल मिर्च, आचार और मसालेदार भोजन आदि।
विहार: विहार का तात्पर्य आपकी दिनचर्या और ऋतुचर्या से है। जैसे सामान्यतः दिन में नहीं सोना। रात्रिजागरण का आधा समय दिन में सोया जाना आयुर्वेद में सही बताया गया है। खाना तब खायें, जब रात का भोजन पच जाये। खाना खाने के बाद भारी काम नहीं करना, व्यायाम नहीं करना। जिससे भोजन का पाचन सही से हो सके। जब भोजन का पाचन सही से नहीं होता तो शरीर में कई तरह के टॉक्सिन तैयार होते हैं जो इस कोरोना काल में बहुत ही नुकसानदायक भी साबित हो सकते हैं।
विहार के अन्तर्गत आयुर्वेद में 13 आधारणीय वेगों को वर्णन मिलता है जिन्हें हमें नहीं रोकना चाहिए। जैसे वात, मल, मूत्र, छींक, प्यास, क्षुधा, निद्रा, श्रमश्वांस, वीर्य, खाँसी, आँसु आदि। इससे भी शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है।
नवजात बच्चों में माँ का दूध ही सबसे बड़ा इम्युनिटी बढ़ाने वाला कारक है। माँ के दूध को भी और असरकारी तथा शुद्ध करने का तरीका आयुर्वेद में वर्णित है। जिससे दुध शु्द्ध और ज्यादा असरकारी होगा तो बच्चों की इम्युनिटी भी बढ़ेगी।
बच्चों का खेलना-कूदना भी करता है इम्यून सिस्टम में ग्रोथ:
डॉ. पवन और डॉ. दीपा ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों का दिनभर घर में घुसे रहना, तथा आउटडोर गेम न खेल पाना, दिनभर कुछ न कुछ खाना और उसका समय से न पचने के कारण भी बच्चों में इम्युनिटी लेवल डाउन हुआ होगा, ऐसे बच्चों में कोरोना से ग्रसित होने की संभावना ज्यादा हो सकती है। लॉकडाउन के कारण ही कहीं न कहीं बच्चों में समय से रोटीन वैक्सीनेशन भी नहीं हो सके उससे भी इम्युनिटी बच्चों की उन मर्जों को लेकर कम ही होगी। मोबाइल में वीडियो गेम और सारा दिन वीडियो देखने वाले बच्चों में चिड़चिड़ापन की आदतें ज्यादा देखने को मिल रही हैं। इसकी वजह से मानसिक स्वास्थ्य भी बच्चों में कहीं न कहीं कमजोर हुआ है।
3 Comments
बहुत ही सराहनीय प्रयास, डाक्टर साहब आपको कोटिशः धन्यवाद….💐💐🙏 🙏🙏
Sarahneey
बेहतरीन और उपयोगी जानकारी