सोवियत संघ के इंजीनियरों ने 1971 में तुर्कमेनिस्तान के रेगिस्तान में एक गैस से भरे गड्ढे में आग जलाई। उन्होंने यह सोचा कि आग की लपटें कुछ ही दिनों में बुझ जाएंगी, लेकिन वे इंजीनियर तब हैरान रह गए जब आग लगातार जलती रही। जानकारी के अनुसार इसकी चौड़ाई 230 फीट है। मालूम हो कि आज 52 साल बाद भी यह साइट, जिसे “द डोर टू हेल” के नाम से जाना जाता है, आज अभी भी जल रही है।
तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दिमुहामेदो ने स्वास्थ्य, पर्यावरण और प्राकृतिक गैस उद्योग पर इसके हानिकारक प्रभावों के कारण गड्ढे की आग को बुझाने के लिए कहा लेकिन प्रयासों के बावजूद, गड्ढा खुला और जलता हुआ पाया गया। जो आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है।
बता दें कि 2013 में वैज्ञानिक जॉर्ज कौरौनिस अनुसंधान के लिए मिट्टी के नमूने एकत्र करने वाले क्रेटर के नीचे उतरने वाले पहले व्यक्ति बने।
एक अन्य जानकारी के अनुसार यह भी माना जा रहा था कि1971 में तेल की ड्रिलिंग करते समय सोवियत इंजीनियरों ने गलती से इसे ढहा दिया था और फिर इसमें आग लगा दी थी। यह गड्ढा काराकुम रेगिस्तान में दरवाज़ा गांव के पास स्थित लगभग 60-70 मीटर व्यास और लगभग 30 मीटर गहरा है।
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