ग़ज़ल/ghazal
उससे यूँ मिलता हूँ जो बैठा है दो सौ मील पर
ध्यान फ़ोटो पर लगा लेता हूँ फ़ोटो कील पर
ध्यान फ़ोटो पर लगा लेता हूँ फ़ोटो कील पर
वक़्त ही अब तय करेगा कौन कितना तेज़ है
चील की आँखें परिंदे पर हैं मेरी चील पर
चील की आँखें परिंदे पर हैं मेरी चील पर
सोच दोनों ने अलग रक्खा है लौ बुझने के बाद
आँख दोनों की लगी है आख़िरी क़िंदील पर
आँख दोनों की लगी है आख़िरी क़िंदील पर
और अब दुनिया मेरी तन्हाई में देती है दख़्ल
मैं भी पत्थर फेंकता रहता था ठहरी झील पर
मैं भी पत्थर फेंकता रहता था ठहरी झील पर
फूल देने में उसे कुछ देर की जिसके सबब
वक़्त ताने कस रहा है अब हमारी ढील पर
वक़्त ताने कस रहा है अब हमारी ढील पर
आपने बोला चले जाओ, चला आया हूँ मैं
हुक्म दे कर आप ख़ुश, मैं हुक्म की तामील पर
हुक्म दे कर आप ख़ुश, मैं हुक्म की तामील पर
– आशु मिश्रा