भाषाई सौहार्द परिषद द्वारा आयोजित परिचर्चा में विद्वानों ने रखे विचार, डा.के.इफतेख़ार अहमद की पुस्तक ‘वैचारिक समन्वय : एक व्यवहारिक पहल’ का विमोचन
लखनऊ, 21 अक्टूबर 2021: ’संवाद ही राह सुझाता है। बहुत लम्बे समय से कट्टरपंथी और राजनीतिक द्वेष वाले नेताओं ने मुसलमानों को यह समझाया है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी उनके दुश्मन हैं, लेकिन ऐसा नहीं है’। डा.अहमद की यह वैचारिक पुस्तक इस बात का आह्वान करती दिखाई देती है कि आरएसएस और बीजेपी से नफरत नहीं, संवाद कायम करना है। किसी तरह का फसाद नहीं, भाईचारा पैदा करना है।’
उक्त उद्गार भाषाई सौहार्द परिषद उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में ‘वैचारिक समन्वय-संवाद की समाधान’ विषयक परिचर्चा में मुख्य वक्ता क तौर पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्गदर्शक और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता इन्द्रेश कुमार ने व्यक्त किये। कैण्ट रोड लखनऊ के होटल ग्रैण्ड रेडियण्ट में इस परिचर्चा के साथ ही डा.ख्वाजा इफतेख़ार अहमद की पुस्तक ‘वैचारिक समन्वय : एक व्यवहारिक पहल’ का विमोचन भी अतिथियों ने विचार व्यक्त करने के साथ किया। इस अवसर पर परिषद के अध्यक्ष एडवोकेट अतहर नबी ने इन्द्रेश कुमार को अंगवस्त्र, स्मृतिचिह्न इत्यादि देकर भारत गौरव सम्मान से अलंकृत भी किया।
आरएसएस के प्रखर प्रवक्ता इंद्रेश कुमार ने पिछली एक सदी के भारतीय राजनीतिक सामाजिक परिवेश और वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख तो किया ही, साथ ही डा.अहमद की किताब के बारे में विस्तार से अपनी बात रखते हुए यह भी कहा कि समस्याओं के समाधान के लिए भयानक आलोचना और टकराव नहीं, बल्कि सौहार्दपूर्ण वातावरण में संवाद बहुत जरूरी है।
भाषाई सौहार्द परिषद के अध्यक्ष एडवोकेट अतहर नबी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू तीनों ही भाषाओं में प्रकाशित हुई यह किताब समूचे देश में पांच सौ से अधिक धर्मगुरुओं, शिक्षाविदों और मुस्लिम समाज के प्रभावी लोगों तक पहुंच गई है। इस अहम पुस्तक को खास तौर पर मुस्लिम समाज के हर प्रभावी व्यक्ति तक पहुंचाने की कोशिश लगातार हो रही है।
उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का वह दर्पण है जिसमें हम समाज को देखते है अर्थात् जो मानवीय जीवन का चित्र होता है, जिसे साहित्यकार अपनी लेखनी के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करता है। साहित्यकार समाज में फैली कुरीतियों, विसंगतियों, अभावों, विसमताओं, असमानताओं से लोगों को रूबरू कराता है। साहित्य समाज से ही उद्भूत होता है और साहित्यकार किसी समाज विशेष का ही अंग होता है इसलिए वह इसी से प्रेरणा ग्रहणकर साहित्य की रचना करता है एवं अपने युग के समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हुए समकालीन समाज का मार्गदर्शन करता है। उन्होंने कहा कि हमारे मजहब में पड़ोसी का भी ख्याल रखने को कहा गया है। हम कुरआन, हदीस और पैगम्बरे इस्लाम के बताए रास्ते पर चलकर अपने देश भारत को एक बेतहर मुल्क बना सकते हैं।
इस अवसर पर एएमयू अलीगढ़ के प्रोफेसर और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के सलाहकर रहे लेखक डा.ख्वाजा इफतेख़ार अहमद ने अपने किताब लिखने पर कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें सिर्फ इंसानी बिरादरी के बारे में सोचना चाहिए। हमारी बहुत सी समस्याएं स्वयं हमारी दूरदर्शिता के अभाव का भी नतीजा हैं। पुस्तक में राजनीति, धर्म और समाज को लेकर 1920 से 2020 तक सभी मुख्य बिन्दुओं के विविध आयामों को समाहित किया गया है।
जामिया मिलिया दिल्ली के प्रो.काजी उबैदुर्रहमान ने कहा कि आज यहां परिचर्चा के केन्द्र में आई यह किताब कई दशकों से संघ और मुस्लिमों में समन्वय व समरसता का यत्न कर रहे लेखक के मंथन से उपजी हुई है। अब मुसलमानों को राजनीतिक क्षितिज पर उभर रही और कामयाब होती भगवा विचारधारा को समझ उनके साथ मिलकर भारत को अग्रिम पंक्ति का राष्ट्र बनाने में अपने द्वारा किये जाने वाले योगदान को समझना या अपने भीतर और आसपास खोजना होगा। मानवता से बड़ा धर्म कोई नहीं है।