आज देश में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की ख़बरें अक्सर सुनाई देती रहतीं है लेकिन जब भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर नकेल डालने के मद्देनजर कार्यवाही करने के उद्देश्य से केंद्रीय एजेंसियां उनपर छापे मारी करती है तो राजनीतिक लोग हो-हल्ला मचाते हुये यह कहना शुरू कर देते हैं कि यह करवाई राजनीति से प्रेरित हैं ऐसे में स्वाभाविक है कि एक तरफ जहां एजेंसियां डाल-डाल हैं तो दुसरी तरफ भ्रष्टाचारी तत्व पात-पात, जैसे मुहावरे को चरितार्थ करते दिखते हैं वैसे सही बात कहा जाये तो हमारे देश में भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे नेताओं एवं नौकरशाहों जैसे लोगों को यदि जल्द से जल्द कठोर से कठोर सजा मिलने की राह आसान हो जाए तो निश्चित तौर पर कोई भी व्यक्ति भविष्य में भ्रष्टाचार करने की जुर्रत नहीं करेगा, लेकिन होता यह है कि भ्रष्टाचारियों से लेकर अपराधियों पर दोष सिद्ध होने में इतना लम्बा समय निकल जाता है कि सजा का महत्व और प्रभाव दोनो क्षीण हो जाते है और ऐसे में मामला इतना कमजोर हो जाता है कि वह स्वतः खत्म हो जाता है या अपराधी येन-केन प्रकारेण अपने आप को साफ बचाने में कामयाब हो जाते है। इस मामले में यदि केंद्रीय एजेंसियों को आज भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर प्रभावी ढंग से लगाम लगाना है तो एजेंसियों को अपनी जांच- पड़ताल की गति तेज कर अपनी रिपोर्ट जल्द लगाना होगा साथ ही निचली अदालतों को भी अपना निर्णय जल्द से जल्द सुनाना होगा।
वैसे सही मायने में कहा जाय तो हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था इतनी लचर हो गई है कि अधिकतर मामले में लोगों को न्याय शीघ्र मिल नहीं पता है इसके लिए यह भी आवश्यक है कि उच्चतर अदालतें भी अपना काम यथा शीघ्र निपटाएं लेकिन वास्तव में मौजूदा समय में ऐसा नहीं हो रहा है और ऐसा कब संभव होगा इस बात का अनुमान लगाना अत्यंत कठिन है क्यूंकि जैसा कि हमे पता ही है कि सरकार औऱ सर्वोच्च अदालत के मध्य कॉलेजियम को लेकर लगातार तनाव का माहौल बना हुआ है। जिसमें कुछ कानूनी मुद्दों को लेकर सरकार और पूर्व न्यायाधीशों के वक्तव्यों के मध्य यह मामला उलझ कर रह गया है।
मौजूदा समय में न्यायायिक व्यवस्था का इतना बुरा हाल है कि कोई- कोई मामले में तो न्याय पाने वाला व्यक्ति ही खत्म हो जाता है या इस हालत में पहुंच जाता है कि उसे न्याय मिले या न मिले उसे कोई अंतर नहीं पड़ने वालीं स्थिति तक पहुंच जाता है ऐसे में स्वाभाविक सी बात है कि न्यायालयों से न्याय मिलने के प्रति लोगों का विश्वास दिन व दिन कम होता चला जा रहा है। यदि सरकार और न्यायाधीशों को देश की न्याय व्यवस्था और न्यायालयों पर से जनता का विश्वास को उठने से रोकना है तो इस सम्बंध में जल्द से जल्द कुछ करने की आवश्यकता है।
- जी के चक्रवर्ती