गौतम चक्रवर्ती
किसी भी देश की तीनो सीमाओं जल, स्थल और नभ की रातोंदिन रखवाली करने के लिए सशक्त सेना की आवश्यकता होती है। हमारे देश में शस्त्र सेना में भर्ती को लेकर जिस तरह के कायदे कानून की घोषणा 14 जून 2022 के दिन देश के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह द्वारा तीनो सेना प्रमुख्यों के साथ घोषणा किया है उसे लेकर पूरे देश में जगह-जगह प्रदर्शन होना आरम्भ हो चुका है।
हमारे देश में अंग्रेजी शासन काल में अंग्रेजो द्वारा बनाए गए सैन्य नियम कायदे कानून आज भी देश के इस संस्था में कायम है। हमारी भारतीय सेना सम्पूर्ण विश्व की चौथी सबसे बड़ी सेना है। इस सूची में वियतनाम सबसे पहले स्थान पर आता है।
मालूम हो कि हमारे देश में सेना में युवकों की भर्तियों का आयोजन समय समय पर किया जाता है। इस भर्ती के लिए अब से ‘अग्निपथ योजना’ के नाम से जाने जाने वाले “टूर ऑफ ड्यूटी” प्रणाली योजना के अंतर्गत अग्निविरो अर्थात युवाओं की भर्ती की जाएगी।
इस योजना के अंतर्गत सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने के इच्छुक नव युवकों को यह योजना न तो उनके गले उतर रही हैं और नही निगलते बन रही है, क्योंकि अग्निपथ योजना के अंतर्गत सेना में युवकों को केवल 4 वर्षों तक का ही देश सेवा करने का अवसर प्राप्त होगा और उसके बाद में वे बाहर निकलने के बाद चाहे खेती करे या चौकीदार की नौकरी करें?
ऐसे में देश में पहले से ही बेरोजगारी का सामना कर रहे युवकों की भीड़ में फौजी युवक भी शामिल हो जायेंगे क्योंकि यह जवान जब फौज से रिटायर होंगे उस समय उनकी उम्र मात्र 23 या 24 वर्षो की ही होगी तो हमारे देश में बेरोजगारो की संख्या में और भी इजाफा होना स्वाभाविक है। इसमें दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि इन सभी युवकों को मात्र छः महीनों तक का ही प्रशिक्षण प्राप्त होगा जोकि अभी तक तीन वर्षो तक का होता है ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या इतने कम समय की प्रशिक्षण प्राप्त सैनिकों में क्या वह दम खम व कौशल से निपूर्ण होंगे जो आज के सैनिकों में मौजूद रहता है?
यहां एक और बात की ओर ध्यान देना पड़ेगा कि अब से यह सैनिक 4 वर्षों तक की नौकरी करने के बाद जब बाहर निकलेंगे तो उन्हे न तो किसी प्रकार की स्वास्थ सेवाएं एवम पेंशन प्राप्त नही होगा और न ही उन्हे और उनके परिवार के 18 वर्ष से कम उम्र के सदस्यों को, ऐसे में यह जवान जब सेवानिवृत होंगे तो ऐसे नौजवानों को देश विरोधी तत्वों द्वारा नौकरी या पैसों का लालच देकर देश के सरकार विरोधी कार्यों में लगा कर देश के सामने नई तरह की चुनौतियां पेश नही करेंगे इस बात की क्या गारंटी है?
हां यह बात अलग है कि ऐसे नवजवानों की सेना में भर्ती होकर 4 वर्षों तक सेवा करने के बाद नौकरी से सेवा मुक्त होने के बाद उन्हे पुनः सेना में वापस भर्ती कर उन्हे एक वॉलेंटियर के तौर पर कार्य करने का मौका दिया जायेगा, बशर्ते कि जो निपुण और सक्षम होंगे। इस तरह से एक बात तो सरकार का मंशा बिल्कुल स्पष्ट है कि अब भारतीय सैनिकों का खर्च केंद्र सरकार पर भारी पड़ने लगा है
शायद सरकार इस खर्च को कम करना चाह रही है, लेकिन क्या सरकार को भारतीय सेना पर इस तरह का प्रयोग करना भारी भी पड़ सकता है। देश का सैन्य बजट या रक्षा बजट भारत के केंद्रीय बजट के समग्र बजट का वह हिस्सा है। भारतीय सेना का भारत के कुल रक्षा बजट के आधे से अधिक का हिस्सा है, जिसमें अधिकांश खर्च महत्वपूर्ण हथियारों और गोला-बारूद के स्थान पर सिनिको के रहने छावनियों, वेतन और पेंशन के रखरखाव पर खर्च किया जाता है।
यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि प्रत्येक देश द्वारा अपने देश की सीमाओं की सुरक्षा करना उतना ही आवश्यक समझता है, जितना अपनी आबादी को और बाकी का खर्च बुनियादी सुविधाओ को उपलब्ध कराने में होता है।
वैसे आपको बता दें कि दुनिया का प्रत्येक देश अपनी सुरक्षा आंतरिक एवं बाहरी दोनों ही मोर्चे पर करता है। सीमाओं की सुरक्षा के लिए थलसेना, नौसेना और वायुसेना तैनात रहती है, तो वहीं आंतरिक सुरक्षा के लिए पुलिस को तैनात किया जाता है। सुरक्षा की एक कीमत होती है और देशों को रक्षा के लिए अरबों रुपये का खर्च करने पड़ते हैं। इसके लिए देश अपना रक्षा बजट निर्धारित करता है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) पूरी दुनिया के सैन्य बजट से लेकर रक्षा के बदलते तौर-तरीकों पर नजर रखने का काम करता है, उसके अनुसार वर्ष 2019 में पूरी दुनिया का रक्षा बजट 1917 अरब डॉलर था। सम्पूर्ण दुनिया में अमेरिका के बाद चीन का रक्षा बजट पर सबसे अधिक खर्च करने वाला देश है।
जब हम हमारे देश के सैनिकों की बात करते हैं तो आज जब केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए सैन्य भर्ती योजना के अंतर्गत भर्ती होने वाला सैनिक क्या सदैव देश की सरहदों पर मर मिटने के लिए तैयार रह पायेगा? एसे में सैनिकों के देश की सीमाओं पर अपने प्राण निछावर करने का जज्बा खत्म हो जायेगा तो एसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या यह स्थिति उन्हे अपने कर्तव्यों से विमुख नही करेगा? एक सैनिक के प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जो उनके ह्रदय में देश के प्रति प्रेम और उसकी सुरक्षा करने की जो भावना पैदा किया जाता है क्या वह जीवित रह पायेगी? यहां एक बात से तो हम सभी लोग सहमत अवश्य होंगे की “भूखे पेट होत नही भजन गोपाला” खैर यहां भूखा पेट तो नही बल्कि वेतन इतना अल्प हो जायेगा कि जिससे वह अपने पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति स्वछंद हो कर नही कर पायेगा।
दूसरा प्रश्न यहां यह उठता है कि क्या युवक मात्र छह महीनों की प्रशिक्षण लेने के बाद युद्ध में उतनी ही निपूर्णता और रण कौशल दिखा पायेगा? जो आज के सैनिकों में मौजूद है इस बात में संदेह है।
सरकार का इस तरह का प्रयोग सेना पर करना निश्चित रूप से उनके और उनके परिवार वालों के प्रति कहीं न कही कुठाराघात करने जैसा ही कर्म है क्योंकि एक सैनिक अपने सम्पूर्ण जीवन काल में जिस तरह के कामों को अंजाम देता हुआ देश और देशवासियों के प्रति अपने खाने पीने से लेकर अपने जीवन की खुशियों का जो त्याग करता है वह निश्चित रूप से अविस्मृणीय है उससे भी अधिक त्याग उनके परिवार के सदस्यों की रहती है और यह बदस्तूर आगे भी कायम रह पायेगा इसमें संदेह तो है ही साथ ही साथ इन सैनिकों के परिवार वालों का भी देश के प्रति अपना सब कुछ निछावर करनें वाली वह भावना आगे भी कायम रहेगी इसमें भी संदेह है उन्हे व उनके आश्रित परिवार वालों के अन्य लोगों को किसी भी प्रकार का कोई सुविधा अब से प्राप्त नहीं होने से क्या उनके और उनके परिवार वालों के दिलों में देश पर प्राण निछावर कर बलिदान होने वाले सैनिकों का आगे भी यही जज्बा कायम रहेगा उसमे संशय है।