देश कितनी भी क्यों न प्रगति कर ले लेकिन जब तक व्यक्ति के दिमाग में मानसिक रूप से प्रगति नहीं होगी तब तक सच्ची प्रगति नहीं हो सकती ! सच तो यह है कि आज भी हमारे समाज का एक बड़ा भाग मध्ययुगीन सोच से ग्रस्त है और उसी के हिसाब से चल रहा है।
हाल ही में मध्य प्रदेश में एक आदिवासी युवक पर पेशाब कांड की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया। इस घटना से यह सवाल उठता है कि क्यों समाज में इस तरह की मानसिकता जड़ें जमाए है कि तथाकथित ऊंची जाति के लोग मौका मिलते ही दलित, आदिवासी की अस्मिता को कुचलने में तनिक भी संकोच नहीं करते। हालांकि ऐसे मामलों के खिलाफ कड़े कानून हैं मगर अक्सर सवर्ण कही जाने वाली जातियों के पहुंच वाले लोगों को उन कानूनों की धज्जियां उड़ाते देखा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि कानून का पालन करने वालों में ज्यादातर वही लोग हैं जो समाज की उच्च कही जाने वाली जातियों से संबंध रखते हैं।
यही कारण है कि ऐसी घटनाओं की एफआईआर दर्ज करने तक में थानों में टालमटोल की जाती है। कई बार बलात्कार की शिकार महिलाओं को समझा-बुझा कर या डरा-धमका कर मामले को दबाने का प्रयास किया जाता है।
#MP सही मे गजब है, परवेश शुक्ला नाम के इस भाजपाई जानवर को जितनी भी दंड मिले वो कम है l#parveshShuklaJanwar #MpPeshabKand pic.twitter.com/zsQHu0CxoU
— Ajay kumar Singh (@ajayks79) July 5, 2023
आमतौर पर यह धारणा बन गई है कि दलितों -आदिवासियों के साथ कुछ अमानवीय व्यवहार हो भी तो कोई कठोर सजा नहीं मिलने वाली है। मध्य प्रदेश की घटना के पेशाब कांड का आरोपी हालांकि गिरफ्तार हो गया है और उसके घर को बुलडोजर से गिरा दिया गया है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इससे उसकी सोच बदल गई है। ऐसे में यह साफ है कि जब तक व्यावहारिक धरातल पर दलितों, आदिवासियों के प्रति सम्मान पैदा नहीं होगा, तब तक उनके साथ ऐसी घटनाएं नहीं रुकने वाली हैं। इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि मध्य प्रदेश जैसी घटना की पुनरावृत्ति हो जाय।
इस केस का एक दूसरा पहलू यह भी है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा उस पीड़ित व्यक्ति के पैर धोकर उसका खोया सम्मान वापस करने की कोशिश की लेकिन राजनितिक दलों ने इसे चुनावी रणनीति बताया । वहीँ दूसरी ओर सोशल मीडिया पर एक बढ़ी बहस छिड़ी हुयी है जिसमे यह कहा जा रहा है कि जिस व्यक्ति के माननीय सीएम ने पैर धोये वह व्यक्ति पीड़ित से मेल नहीं खाता है ?