सीधी बात : अंशुमाली रस्तोगी
क्या कवि या व्यंग्यकार की भूमिका सिर्फ पुरस्कार बटोरने और अपना यूट्यूब चैनल चालू कर उसके सब्सक्रिप्शन की खातिर गिड़गिड़ाने तक है? आज जब देश के लोकतंत्र, संविधान और भाईचारे को फासीवाद के जूतों तले रौंदा जा रहा है, तब ये यूट्यूबधारी कवि और व्यंग्यकार कहां हैं, क्या कर रहे हैं?
हमें नहीं पढ़नी तुम्हारी विदेशी कवियों की अनुवादित कविताएं, रचनाएं। क्या करेंगे इन्हें पढ़कर? पहले अपने घर का तो हाल देख व जान लीजिए। देश और समाज को नकली हिंदुत्व की सलीब पर चढ़ाया जा रहा है और आप प्रेम पर कविताएं खींच रहे हैं। क्या पाश और दुष्यंत को तुम नहीं जानते?
व्यंग्यकारों का हाल तो और भी दयनीय है। बेतुके विषयों पर व्यंग्य लिखा जा रहा है किंतु वर्तमान सरकार और नेताओं पर कटाक्ष करने से व्यंग्यकार साफ बच निकल रहे हैं। सुनों, देश के व्यंग्यकारों तुम व्यंग्य लिखना छोड़कर चारणगिरी करना शुरू कर दो सरकार की। तुम परसाई हो ही नहीं सकते कभी भी।