आज सारा विश्व यूक्रेन और रूस के युद्ध पर टकटकी लगाए देख रहा है और रूस की निगाहें टिकी हैं उसके पड़ोसी देश यूक्रेन पर। रूस अपने फायदे के लिए यूक्रेन पर हमला करने से न चूका। आज के युग में भी जब ग्लोबलाइजेशन के कारण कोई भी देश किसी युद्ध में जीतता नहीं है। उसे जीत नाम पर आज आर्थिक मोर्चे पर हारना ही पड़ता है, तब ऐसा भीषण युद्ध आखिर क्यों ?
दरअसल यूक्रेन का रूस के लिए बड़ा महत्त्व है। आज से 30 साल पहले सोवियत संघ के बिखरने पर यूक्रेन अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य बना था। सोवियत संघ का जो रुतबा था, वह दुनिया के सबसे बड़े देश रूस को हासिल हुआ। इस तरह अमेरिका स्वतः सोवियत संघ के बदले रूस का सबसे बड़ा विरोधी हो गया।
फोटो सोशल मीडिया से साभारअमेरिका और रूस की दुश्मनी जग-जाहिर है। वो तो भला हो परमाणु बमों का जो कोई किसी पर हमला नहीं करता। पर अपने मित्र देशों के सहारे ये एक-दूसरे पर दबाव बनाए रखना चाहते हैं। और यही वो कारण है जो यूक्रेन बर्बाद हो रहा है। अमेरिका और उसके मित्र देशों का संगठन है नाटो। अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन उसमें शामिल हो जाए ताकि उसकी पहुंच रूस की सीमा तक हो जाए। नाटो में शामिल देश दुश्मन से मिलकर लड़ने का दावा करते हैं।
सब देशों के आमंत्रण पर यूक्रेन नाटो में शामिल होने की तैयारी करने लगा। अब रूस नाटो के बहाने अमेरिका को अपनी सीमा के पास मिसाइल और हवाई बेड़ा तैनात करते नहीं देखना चाहता था।
रूस ने यूक्रेन को डराने की कोशिश की। पर नाटो के सदस्य देशों और यूरोपियन संघ ने यूक्रेन को भरोसा दिलाया कि अगर रूस ने आक्रमण किया, तो हम सब मिलकर युद्ध लड़ेंगे। पर ऐसा हुआ नहीं, हो भी नहीं सकता था। रूस के पास हथियारों को और परमाणु बमों का जखीरा है। उससे उलझकर विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर धकेलने वाली बात होती।
अपने मित्र देशो की थोथी बातों में आकर यूक्रेन ने रूस को भाव नहीं दिया, तो रूस ने पहले यूक्रेन के तीन टुकड़े किए। दो टुकड़ों पर विद्रोहियों की सरकार को मान्यता दी और फिर मेन यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को उम्मीद थी कि आक्रमण होते ही अमेरिका और मित्र देश उसकी सहायता के लिए रूस पर धावा बोल देंगे। पर करनी और कथनी में अंतर होता है। सब देश निंदा युद्ध और प्रतिबंध युद्ध में लग गए पर किसी ने यूक्रेन की ओर से लड़ने के लिए सैन्य बल नहीं भेजा।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तो साफ इनकार कर दिया। सब देशों के डरने का कारण था कि रूस ने खुली धमकी दी थी कि युद्ध को आगे बढ़ाया गया तो वह परमाणु बमों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकेगा।
तो अब खेल यह है कि रूस अपनी मनमानी कर रहा है, किसी की बात सुनने को राजी नहीं है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेस्की सबसे सहायता मांग मांगकर थक चुके, पर उन्हें अकेले लड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। उसे उकसाने वाले देश बस किनारे खड़े होकर यह नारा लगाने में व्यस्त हैं कि, ‘यूक्रेन तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।’
उधर अपनी खीझ मिटाने को रूस युद्ध के नियमों को ताक पर रखकर रिहायशी इलाकों और अस्पताल तक पर आक्रमण कर रहा है। अब रूसी राष्ट्रपति पुतिन अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
मालूम हो कि मेडिकल की पढ़ाई के लिए रूस, यूक्रेन आदि देश भारत के बच्चों को बहुत पसंद है। एक तो भारत में पढ़ाई बहुत महंगी है और उस पर दाखिला भी मुश्किल से मिलता है। भारत से एक चौथाई खर्च पर वहां डॉक्टर बन जाते हैं। इस युद्ध के कारण भारत के लाखों बच्चे वहां फंस गए हैं। अब तक दो-चार बच्चे युद्ध की भेंट चढ़ चुके। आपरेशन गंगा के सहारे बच्चों को सरकार वापस भारत लाने में सफल रही है। पर बच्चों की जान पर बनी है।
युद्ध में भारत रूस का साथ नहीं दे रहा, तो उसकी आलोचना भी नहीं कर रहा। इसकी खीज अब यूक्रेनी सेना भारतीय बच्चों को परेशान करके निकाल रही है। इस युद्ध से यह सीख जरूर मिली है कि किसी के उकसाने और भरोसे के आधार पर युद्ध में नहीं कूदना चाहिए। जब संघर्ष की बारी आती है, तो आपको ही करना पड़ता है। दुनिया दूर खड़े होकर तमाशा देखती है। युद्ध से कमजोर होने वाले यूक्रेन का सब फायदा उठाना चाहेंगे, और भुगतेंगे यूक्रेन के निवासी।
- पायस