वाइल्ड लवर: अनुराग प्रकाश की कलम से
दुधवा का यूँ तो पूरा जंगल ही बहुत खूबसूरत है पर इसके सठियाना रेंज की खूबसूरती अद्भुत है। ये मेरा पसंदीदा एरिया भी है । बहुत सी पुरानी यादें जुड़ी है इस क्षेत्र से । इन्ही यादों में से एक छोटी सी घटना आपसे साझा कर रहा हूँ ।
तकरीबन 17 साल पुरानी बात है ये मेरा सठियाना में 3 दिनों तक रुकने का प्लान था । मैं अकेला था और मेरे साथ रामस राना गाइड था । मई का महीना था सुबह 6 बजे जब हम घूमने निकले तो चीतलों के बड़े झुंडों के अलावा बारहसिंघा के कई बड़े झुंड दिखाए दिए और बाघ के ताजा पगमार्क तो दिखे पर महाराज के प्रतक्ष्य दर्शन नही हुए।
मैंने रामस से यूं ही मजाक में कहा यार कुछ खास तो दिखा नही अभी तक तो वो बोला सर् धैर्य रखिये सठियाना में बाघ तो दिखेगा ही। सुबह की सफारी से वापस आकर हमने शाम की सफारी के लिए तय किया कि हम सतीमठ का चक्कर लगाकर मदरैया मचान की तरफ चलेंगे।
इसी प्लान के साथ शाम क़ी सफारी शुरू की । सतीमठ ग्रास लैंड बहुत ही खूबसूरत है । इस ग्रासलैंड का पूरा चक्कर लगा कर मैंने गाड़ी एक जगह रोक कर जंगल की गतिविधि पर कान लगा दिए, कि कही से कोई कॉल सुनाए दे तो उस तरफ चला जाये ।
कुछ वक्त ही गुजरा था कि अचानक मेरी नज़र ग्रासलैंड में स्प्रिंग की तरह उछलती एक चिड़िया पर पड़ी मैंने रामस से पूछा ये कौन सी चिड़िया है तो वो उस तरफ देखने लगा और जैसे ही वो दोबारा ऊपर उछली तो रामस की आंखों में एक अजीब सी चमक आई और वो अपने चिर परिचित लहजे में बोला । अरे सर् ये तो बंगाल फ्लोरिकन है । बहुत मुश्किल से दिखती है ये हम लोग खुशकिस्मत है जो हमे ये दिखाई दी ।
हम लोग 15 मिनट तक उसका यही उछलना देखते रहे और फिर वहाँ से चल दिऐ। मदरैया मचान पहुचते हुए टाइम ज्यादा हो गया था इसलिए वहा ज्यादा देर रुकना ठीक नही था क्योंकि वह मचान रेस्ट हाउस से काफी दूर था । तो हमने जल्दी ही वापस होने का मूड बना लिया ।
रास्ते मे वापस आते वक्त शाम होने लगी थी । तभी रास्ते मे एक बड़ी आकृति दिखाई दी हम लोगो ने सुरु में समझा की पास के किसी गाँव का भैसा आ गया है । लेकिन जैसे जैसे हम उसके करीब पहुचे देखा वो एक बहुत बड़ा टाइगर था जो पूरा रास्ता रोक के खड़ा था और रास्ते से उसके हटने का कोई इरादा नही लग रहा था । हम लोग गाड़ी बन्द करके रुक गए और रास्ते से उसके हटने का इंतजार करने लगे ।
लेकिन वो बाघ वही बीच रास्ते मे बैठ गया। अब अंधेरा लगभग होने ही वाला था । रामस फिर अपने ही अंदाज़ में बोला महराज रास्ता छोड़ दे अब हमें निकल जाने दें । फिर मैंने गाड़ी स्टार्ट की उसकी आवाज से टाइगर ने कान खड़े किए और गाड़ी की तरफ देखा फिर धीरे से उठ कर किनारे झाड़ियों में चला गया।
मैं थोड़ा रुक कर ताकि वो बाघ अंदर चला जाये तब मैं आगे चला और अपनी मारुति 800 कार से उसी जगह झाड़ी में देखा तो कार के दरवाजे से मात्र 8-10 फुट के दूरी पर वो बड़ा सा सर मुझे दिखाई दिया जिसे मैं ताउम्र नही भूल पाऊंगा।
मानो उस टाइगर ने हमे सिर्फ निकलने का रास्ता दिया हो । दुधवा में बिताए अपने पुराने वक़्त को मैं कभी नही भूल पाऊंगा । हर बार जाता हूँ तो उन पुराने दिनों के दुधवा को ढूढने की कोसिस करता हूँ । लेकिन मायूस होकर लौटता हूँ तो किशोर दा का वो गाना याद आ जाता है। ” जिंदगी के सफर में गुजर जाते है जो मकाम वो फिर नही आते वो फिर नही आते “