जी के चक्रवर्ती
वैसे हमारे वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्मांड के अनसुलझे गुत्थियों को सुलझाने में अभी भी एक लम्बा समय लग सकता है, लेकिन फिर भी हम तो यही कहेंगे कि एक न एक दिन यह गुत्थि अवश्य सुलझ जायेगी। यदि हम अपने ब्रह्मांड यानी यूनिवर्स के विषय मे और अधिक जानकारियां इकठ्ठा करना चाहें तो हमे अपनी बुनियादी समझ को पुनः दोहराना होगा।
अनंत ब्रह्मांड की जटिल गुत्थियों को समझने के लिए अभी कुछ ही वर्ष पहले अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी में एस्ट्रॉनमी की प्रफेसर द्वारा ब्लैक होल और काले पदार्थ (डार्कमैटर )के विषय में दुनिया की बौद्धिक क्षमता को विकसित कर जानकारियों के क्षेत्र को बृहद करने में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अभी 2 वर्ष पहले 14अप्रैल वर्ष 2019 में ब्रह्मांड में स्थित ‘ब्लैक होल’ की पहली तस्वीर भी जारी की गई थी। हम आप मे से बहुत लोगों के मन में इस तरह का प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर यह ब्लैक होल क्या है? जहां तक इसके आकर की बात करें तो यह हमारी धरती से लगभग 30 लाख गुना बड़ा है। इस तरह एक बार फिर से इस विराट ब्रह्मांड की अनसुलझी गुत्थियों की चर्चाये बहुत जोरों पर है।
जब हम आपने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विषय मे बात करते हैं तो यह प्रश्न हमारे मष्तिष्क में कौंधता है कि आखिर ब्रह्मांड का निर्माण किस प्रकार से और कब हुआ है? दरअसल आजतक इस तरह की जानकारियां हमारे वैज्ञानिकों के पास नही है और नही इस विषय में कोई अंतिम रूप से प्रमाणित तथ्य हमारे पास उपलब्ध हैं लेकिन जब हम एक स्थापित सिद्धांत के अनुरूप बिग बैंग को इस ब्रह्मांड का शुरुआती चरण माने तो उसके अनुसार आज से लगभग 140 करोड़ वर्ष पूर्व एक अति सूक्ष्म बिंदु में महाविस्फोट होने से यह बिंदु टुकड़े-टुकड़े होकर चारो ओर इधर-उधर छिटक कर विखर कर इससे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है, जिसे हम बिग बैंग के नाम से जानते हैं और यही ब्रह्मण्ड की प्रारंभिक अवस्था थी कि जब आकाशगंगा से लेकर तारे, ब्लैक होल, ग्रह नक्षत्र आदि का निर्माण हुआ, लेकिन ब्रह्मांड के फैलने का क्रम आज भी लगातार जारी है।
यदि इसे हम इसे इस तरह से समझने की कोशिश करें कि जैसे हम एक चित्तीदार गुब्बारा ले कर उसे अपने मुहँ से फुलायें तो जैसे-जैसे गुब्बारा फूलता जायेगा वैसे-वैसे गुब्बारे के ऊपरी सतह पर बने चित्तियाँ आपस मे एक दूसरे से दूर होती जाएंगी। ठीक इसी तरह हमारा आकाशगंगा भी लगातार इस गुब्बारे कि भांति फैलता जा रहा है जिससे उसके तारे और ग्रह आपस मे एक दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं।
एक शोध में ऐसा अनुमान लगाया गया कि एक न एक समय आकर यह विस्तार होने का सिलसिला समाप्त हो कर पुनः आकाश गंगा वापस एक बिंदु में समा समाहित हो जाएगा। परंतु वर्ष1998 में हबल टेलिस्कोप के द्वारा यह पता चला कि ब्रह्मांड जिस गति से फैल रहा है, वह गति भी लगातार बढ़ती चली जा रही है। यानी कोई बाहरी शक्ति अवश्य है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा डार्क एनर्जी के कारण हो रहा है। यह डार्क एनर्जी हमारे आसपास प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध है। लेकिन यह हमें दिखाई नहीं देती है, इसीलिए इसे हम काला यानिकि डार्क कहते हैं। इसे हम न तो माप सकते हैं और न ही इसकी जांच कर सकते हैं। हां, इसका असर हमें महसूस अवश्य होता है। यह खाली जगहों पर पाई जाती है।
दरअसल ब्रह्मांड जितना दिखता है, वह समूचे ब्रह्मांड का केवल 5 प्रतिशत तक का ही हिस्सा है। डार्क एनर्जी 68 प्रतिशत है। बाकी 27 प्रतिशत डार्क तत्त्व है। यह वर्ष 1933 में खोजा गया था। इसे भी नहीं देखा जा सकता है लेकिन इसका प्रभाव दिखता है। दरअसल डार्क तत्त्व इतनी शक्तिशाली गुरुत्त्वाकर्षण उत्पन्न कर रहा है कि जिससे सभी सारे तारे एक ही आकाशगंगा में आपस मे बंधे रहते हैं। वे इधर-उधर छिटक नही सकते हैं। यह अंधेरा तत्व न तो प्रकाश को अवशोषित करता है और न ही उसे प्रवर्तित करता है। यह अणु-परमाणु से न बना होकर ऐसे जटिल और अनोखे कणों से बना है जिनके विषय में हमें अभी तक पता नहीं हो पाया है।
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