मनुष्य के अलावा
दुनिया का कोई भी प्राणी
भगवान को नहीं मानता।
जहाँ इन्सान नहीं पहुँचा,
वहाँ एक भी मंदिर
मस्जिद या चर्च नहीं मिला।
अलग-अलग जगहों पर
अलग-अलग देवता हैं।
इसका मतलब इन्सान को
जैसी कल्पना सूझी
वैसा भगवान बनाया।
दुनिया में अनेक धर्म, पंथ
और उनके अपने-अपने देवता हैं।
इसका मतलब भगवान भी एक नहीं है।
दिन प्रतिदिन नये-नये
भगवान तैयार हो रहे हैं।
अलग-अलग प्रार्थनाएँ हैं।
‘मानो तो भगवान नहीं तो पत्थर’
यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी।
दुनिया में देवताओं के
अलग-अलग आकार
और उनको प्रसन्न करने के लिए
अलग-अलग पूजा।
अभी तक किसी इन्सान को
भगवान मिलने के
कोई प्रमाण नहीं हैं।
भगवान को मानने वाला और
नहीं मानने वाला भी
समान जिंदगी जीता है।
भगवान किसी का भी
भला या बुरा नहीं कर सकता।
भगवान भ्रष्टाचार, अन्याय, चोरी, बलात्कार,
आतंकवाद, अराजकता रोक नहीं सकता।
छोटे मासूम बच्चों पर
बंदूक से गोलियाँ
दागने वालों के हाथों को
भगवान नहीं पकड़ सकता।
मंदिर, मठ, आश्रम, प्रार्थना स्थल,
जहाँ माना जाता है कि
भगवान का वास होता है,
वहाँ भी बच्चे व महिलाएँ
सुरक्षित नहीं हैं।
मंदिर, मस्जिद, चर्च को
गिराते समय
एक भी भगवान ने
सामने आकर
विरोध नहीं किया।
बिना अभ्यास किये
एक भी छात्र को
भगवान ने पास किया हो,
ऐसा एक भी उदाहरण
आज तक सुनने को नहीं मिला।
बहुत सारे भगवान ऐसे हैं,
जिनको 25 साल पहले
कोई नहीं जानता था,
वह अब प्रख्यात भगवान हो गये हैं।
खुद को भगवान समझने वाले
अब जेल की हवा खा रहे हैं।
दुनिया मे करोड़ों लोग
भगवान को नहीं मानते,
फिर भी वे सुख से रह रहे हैं।
हिन्दू अल्लाह को नहीं मानते।
मुस्लिम भगवान को नहीं मानते।
इसाई भगवान और अल्लाह को नहीं मानते।
हिन्दू, मुस्लिम गाॅड को नहीं मानते।
फिर भी भगवानों ने
एक दूसरे को नहीं पूछा कि ऐसा क्यों?
एक धर्म कहता है कि
भगवान का आकार नहीं।
दूसरा भगवान को आकार देकर
सुंदर कपड़े पहनाता है।
तीसरा अलग ही बताता है।
मतलब सच क्या है?
भगवान है तो लोगों में
उसका डर क्यों नहीं?
मांस भक्षण करने वाला भी जी रहा है
और नहीं करने वाला भी जी रहा है
और जो सब खाता है, वह भी जी रहा है।
रूस, अमेरिका भगवान को नहीं मानते,
फिर भी वे महासत्ता हैं।
जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो
फिर चार वर्ण की व्यवस्था
सिर्फ भारत में क्यों है?
अन्य देशों में क्यों नहीं ?
जब पिछले जन्म के कर्म के आधार पर
जातियों का निर्माण किया गया है तो
भारतीय जातियां अन्य देशों में
क्यों नहीं पायी जाती हैं ?
जब वेद ईश्वर वाणी है तो
भारत के अलावा अन्य देशों में
वेद क्यों नहीं हैं
वेद सिर्फ संस्कृत में क्यों है
अन्य भाषाओं में क्यों नहीं
क्या इन भाषाओं को
बोलने वालों के लिए वेद नहीं है?
– गौरव मिश्रा