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    Home»इतिहास के आईने से

    राजा महाराजाओं के शासनकाल में राजा को रानी के साथ दासी भी क्यों दी जाती थी?

    ShagunBy ShagunJune 23, 2023 इतिहास के आईने से No Comments2 Mins Read
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    प्रशांत राव

    भारत समेत विश्व में जितने भी राजा महाराजा हुए हैं उनके साम्राज्य में बड़ी संख्या में दासियों का होना एक सामान्य बात होती थी। मुख्य रूप से दासियों की जरूरत इसलिए पड़ती थी क्योंकि पूरे साम्राज्य में व्यवस्था का क्रियान्वयन करने करने के लिए जन धन की आवश्यकता होती थी।

    इसके अलावा दासियों को महल की साज सज्जा के लिए भी नियुक्त किया जाता था. लेकिन मुख्य रूप से दासी उन्हें ही बनाया जाता था जो दिखने में सुंदर और अपने कार्यों में निपुण हुआ करती थे. पहले के समय में सभी राजा महल में ही स्त्रियों की शिक्षा और अन्य व्यवस्था करवाते थे. ऐसे में सभी रानियों और राजकुमारियों की हर प्रकार की सहायता के लिए दासिया ही नियुक्त की जाती थी. सभी निपुण दासियों में से जो उत्कृष्ट होती थी उन्हें राजा महाराजा अपनी बेटी के विवाह के समय बेटी के साथ भेज देते थे. एक प्रकार से कहा जा सकता है कि इन्हें दहेज में दे दिया जाता था. मुख्य रूप से इनका उद्देश्य ससुराल में अपनी बेटी की सहायता करने के लिए भेजा जाता था. इसके अलावा भी कई कारण है जैसे कि राजपरिवार में रचे जाने वाले षड़’ यंत्रों से बचाव हेतु ।

    वहीं दूसरे शब्दों में कहें तो राजकुमार की शादी होती थी तो राजकुमारी के साथ आई दासी की शादी राजकुमार की माँ के साथ आई हुई दासी के बेटे के साथ कर दिया जाता था और राजकुमारी की शादी में साथ में गई दासियों की शादी की जिम्मेदारी उसके ससुराल पक्ष की होती थी।

    इतना ही नहीं इस व्यवस्था में दास और दासी के भरण पोषण के अलावा उनके बेटे और बेटियों की शादी अपनी बेटे बेटियों के साथ ही करवाना राजपरिवारों की जिम्मेदारी होती थी।

    वैसे मूल दास परिवारों की तुलना अंग्रेजी गुलामी से नहीं की जा सकती, क्योंकि इसमें पूरे परिवार का भरण पोषण, रहन व्यवस्था, शादी व्यवस्था और अन्य पूरा खर्च अच्छे से उठाना राजपरिवारों की पूरी जिम्मेदारी हुआ करती थी , लेकिन समय के साथ कहीं कहीं इसमें खराबी और शोषण जुड़ गए थे।

    इसके अलावा आखिर में बता दें कि इन दासियों का कार्य राजकुमारी को शासन के कार्यों से सम्बन्धी सूचनाएं देना होता था कि पुत्र उत्तराधिकार प्राप्त करेगा या नहींI वहीं इन दासियों को आजीवन अविवाहित रहना होता था और अपनी महारानी और उनके पुत्रों की रक्षा करना ही इनका आखिरी धर्म होता था।

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