गौतम चक्रवर्ती
यदि कोइ आप से नार्थ सेंटिनल की बात करें तो आपको इस द्वीप के बारे में जानकारी है तो ठीक है अन्यथा आप गलती से भी यहां कभी भी मत जाइएगा क्योंकि यह आइलैंड मौत की खाई जैसा है। और अगर आप हम में से कोई भी इंसान यहां जाने की हिम्मत जुटा कर यहां पहुंच भी जाता है तो समझिये कि उसकी मौत निश्चित है। यदि इसके कारणों की बात करें तो हम आपको यह बात दें कि दरअसल यह आइलैंड अंडमान निकोबार द्वीप समूह में से एक है।
आज से लगभग 60 हजार सालों से इस द्वीप में जरवा आदिवासी जन समुदाय के लोग रह रहे हैं। दरअसल इस द्वीप में हम या आप मे से कोई भी यहां जाना चाहे तो नहीं जा सकते हैं इस बात के उदाहरण स्वरूप अभी कुछ वर्षो पूर्व एक अमेरिकी खोजी यात्री इस द्वीप में पहुंच जरूर था, लेकिन वह वापस लौट कर नहीं आया।
यह द्वीप अंडमान एंड निकोबार में स्थित यह नार्थ सेंटिनल द्वीप के नाम से जाना जाता है। यह बंगाल की खाड़ी में फैले अंडमान द्वीप समूह में का एक द्वीप है। यहां पर किसी भी देश के नागरिकों को जाने की इजाजत नहीं है। भारत सरकार इस इलाके को निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर रखा है इसके कारणों में यहां रहने वाली एक जारवा जनजाति समुदायों के रूप में इंसानो की आबादी के कारण है। इस जन जाती लोगों का बाहरी दुनिया से किसी तरह का कोई संपर्क नहीं है।
जारवा, भारत के अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह की एक प्रमुख जनजाति है जिसकी आबादी वर्तमान समय में 250 से लेकर 400 तक अनुमानित है जो कि अत्यन्त कम है। जारवा लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और छोटे कद के होते है। लगभग वर्ष 1990 तक जारवा जनजाति किसी की भी नज़रों में नहीं आयी।
यहां रहने वाली सेंटिनली जनजाति के लोगों ने आज तक किसी भी बाहरी व्यक्ति या हमले का सामना नहीं किया।
मीडिया रिपोर्ट्स और एक शोध के अनुसार, इनकी बनावट और भाषाई समानताओं के आधार पर जारवा सुमदाय के लोगों का समूह मे बंटा जाता है। कॉर्बन डेटिंग के आधार पर यह माना जाता है कि यह जनजाति इस क्षेत्र में आज से 2,000 वर्ष पूर्व से रह रही है।
यहां पर हम आप मे से कोई भी इन जनजातीय लोगों की फ़ोटो नहीं खींच सकते हैं क्योंकि यहां के जनजातियों को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) विनियमन, वर्ष 1956 जारी कर इन्हें संरक्षित किया है। इसके बाद से इस क्षेत्र में प्रशासन के अतिरिक्त किसी भी अन्य बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर निषेध लगा दिया। यहां के जनजातीय समुदाय के लोग बाहरी व्यक्तियों के विरुद्ध शत्रुता पूर्ण व्यवहार करते हैं।
इस द्वीप पर रहने वाले लोग की आम भारतीय लोगों की ही तरह भारत सरकर समय-समय पर जनगणना करवाती रहती है। वर्ष 2011 में इस जनजातीय समुदाय के लोगों की जनगणना का काम किया गया था। उस गणना के अनुसार 15 सेंटिनली लोग को ही खोजने मे सफलता हाथ लगी थी जिसमें 12 पुरूष और 3 महिलाएं शामिल है।
ट्विटर पर सन 2018 में शेयर किये गए ब्रजेन्द्र शुक्ला एक तथ्य के मुताबिक जो इस द्वीप पर कुछ मिशनरी संस्था द्वारा कुछ लोगों को भेजा गया था जिनमें वह बहुत अथक प्रयास के बाद जान बचाकर भागे थे लेकिन उनमें से एक को बड़ी बेहरहमी से मार दिया गया था।
आज तक किसी बाहरी व्यक्तियों द्वारा इन्हें नही देखे जाने से इस जनजाति के विषय मे अधिक जानकारीयां उपलब्ध नही होने से आज तक यह लोग एक अलग तरह का जीवन निर्वाह करने के लिए मजबूर हैं, अगर उनके इलाके में कोई बाहरी इंसान प्रवेश करता है, तो यह लोग उसे देखते ही मार डालते थे, हालाँकि वर्ष 1998 के बाद से इनकी इस तरह के स्वभाव में बहुत बड़ा परिवर्तन आ चुका है।
आज हम मानव जाति और उसका विज्ञान चाहे जितनी भी उन्नति कर चुका हो लेकिन इस रहस्मयी दुनिया की अनेको रहस्यों और चीजों पर से पर्दा उठाना अभी भी शेष है।
नार्थ सेंटिनल द्वीप फैक्ट :
- पोर्ट ब्लेयर से 50 किलोमीटर दूर है स्थित
- महज 23 वर्ग मील में है फैला
- यहां आदिवासी करीब 60 हजार सालों से रह रहे हैं
- इनकी तादाद 100 से भी कम है