जी के चक्रवर्ती
फिलहाल हमारे देश मे समस्याएं तो बहुत साऱी हैं। एकदम से उन सभी को खत्म करना शायद किसी के लिए भी संभव नही है लेकिन समाज से सद्भाव, निष्ठा, भाईचारा, करुणा और विश्वास जैसी मानवीय जीवन मूल्य कहीं खोते चले जा रहे हैं। मूल्य मात्र अक्षर नहीं है बल्कि संस्कार एवं आचरण हैं जिन्हें हम धीरे-धीरे खोते चले गए। महापुरुषों के जीवन चरित्र आदर्शों एवं मूल्यों के अनुशरण करने वाला देश और उसके लोगों को रामनवमी और हनुमान जयंति के अवसरों पर देश के कई प्रदेशों में हिंसा, नफरत, द्वेष और तोड़-फोड़ जैसे उन्माद फैलाने वाले दृश्य हमे और आपको देखने को मिला। उत्तर भारत के प्रांतों के अतिरिक्त इन घटनाओं को घटित होते हुये पूर्वी और दक्षिण प्रांतों में भी देखने को मिले।
पिछले एक दशक में हमारे देश मे ऐसी हिंसात्मक साम्प्रदायिक घटना देखने को नही मिली लेकिन आज के समय मे इस तरह की घटनाओं का घटित होना बहुत चिंता का विषय होने के साथ-साथ आज भी हमारे समाज मे कुछ जाति-पाति की संकीर्णताओं से घिरे लोगों के मौजूद होने के धोतक तो है ही इसके साथ ही यदि हम बिना लाग लपेट के कहें तो अविश्वास, द्वेष पूर्ण, राजनैतिक अनैतिकता भरे दमन का वातावरण का अचानक से उत्पन्न होना एक षड्यंत्र की ओर ही इशारा करता है।
ऐसी अनिश्चय और भय आक्रांत स्थिति को क्या हम किसी भी राष्ट्र के लिए शुभ संकेत कह सकतें है। जिसे लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा लिए गये ताजा फैसलों का महत्व समझा जा सकता है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आस्था का विषय नितांत निजी है और देश का कानून अपने सभी नागरिकों को अपने-अपने तरह की उपासना करने की आजादी देता है लेकिन आस्था जब प्रतिस्पर्द्धा और हिंसात्मक रूप धारण कर ले तो वह कानून के दायरे में आ जाता है।
यहां पिछली सरकारों की बातें न उठाते हुए यह कहना पड़ता है कि फिलहाल केंद्र और राज्य की सरकारें भय और राजनीति नफा-नुकसान के गणित से ऊपर उठकर इस मामले में कठोर एवं साहसिक निर्णय लेकर साम्प्रदायिक नफरत, हिंसा एवं द्वेष फैलाने वालों पर कठोर कदम उठा कर समय रहते ही स्थिति को और भी नाजुक होते हुये बचा लिया।
किसी भी लोकतंत्र में साम्प्रदायिकता, जातीयता, हिंसा फैला कर किसी भी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता है। इस मौलिक सत्य व सिद्धांत की जानकारी से आज देश का नेतृत्व भलीभांति परिचित है।
विभिन्न धर्म समाज के लोगों से सजा भारतीय समाज में पूजा-इबादत की विविधता इसके सांस्कृतिक सौंदर्य का अभिन्न अंग होने से पूरी दुनिया में समय-समय पर इसकी मिसालें भी दी जाती रही है।
आज स्वत्रंत भारत के कुछ राजनीतिक दलों द्वारा साम्प्रदायिक नफरत एवं द्वेष की तल्ख घटनाओं को कुरेदने की कोशिशें भारतीय राजनीति में भाईचारे जैसी सौहार्द पूर्ण संस्कृति को गहरा आघात पहुंचाने का ही काम करने में लगे हुये हैं।
स्वार्थ एवं संकीर्णता भरी राजनीति से देश का चरित्र धूमिल होता है। सत्ता और वोट की मोह ने शायद एसे लोगों के विवेक पर पत्थर डाल दिया है।
हम साम्प्रदायिक आग्रह-पूर्वाग्रह के इतिहास को गर्व से नही बल्कि शर्म से ही पढ़ेंगे। आज हमारे समाज मे झण्डे, तलवारे और नारे नहीं बल्कि सत्य की स्थापना कर प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना चाहिए।