जी के चक्रवर्ती
एक लम्बे अंतराल के बाद बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने चुप्पी तोड़ते हुये उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में बेरोजगारी का बिगुल फूंककर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने सामने आयीं हैं। इस बार वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी करते हुये मायावती ने बेरोजगारी जैसे ज्वलन्त मुद्दे को अपना चुनावी मुद्दा चुनते हुये उन्होंने देश के बेरोजगरों और नवयुवकों को लुभाने के लिये बेरोजगारी के लिये बीजेपी और कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुये बीजेपी को कांग्रेस की राह पर न चलेने की नसीहत तक दे डाली।
लखनऊ के (कांशीराम स्मारक) इको गार्डेन में कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने युवाओं की बेरोजगारी के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही निशाने पर लिया है। वैसे यदि हम उत्तर प्रदेश और देश में बेरोगारी की समस्या की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) ने हाल ही में उसके द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में यह कहा है कि वर्ष 2019 तक भारत मे बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 1 करोड़ 89 लाख हो जाएगी। वहीं जब हम देश के अकेले उत्तर प्रदेश राज्य के बेरोजगारों की बात करें तो अभी तक उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक उत्तर प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या लगभग 34 लाख के पार पहुंच चुकी है जो कि स्वयं सरकार द्वारा वर्ष 2018 में जारी किए गए आंकड़े से 54 प्रतिशत अधिक है।
देश के बेरोजगारों को विशेषकर उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में नौकरियां देने वाले मुख्यमंत्री के दावे झूठे, भाजपा की कुनीतियों के कारण बढ़ी बेरोजगारी की संख्या में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होते चले जाने से आज विकराल रूप धारण कर चुकी है।
ऐसा नहीं है कि ये मुद्दा किसी ने उठाया नहीं बता दें कि बेरोजगारी का मुद्दा पहली बार बिहार विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव द्वारा वर्ष 2020 में उठते हुये बिहार के नवयुवकों को 10 लाख नौकरियों तक का वायदा करने से बिहार में चुनाव के परिणाम पर बेहद जोरदार रहा।
आज के समय मे पूरे देश भर में करोड़ों युवा व शिक्षित बेरोजगारों की बात करें तो वे सड़क किनारे पकौड़े बेच कर या मजदूरी कर अपना जीवनयापन करने के लिए मजबूर हैं।
अब इन हालातों में यह प्रश्न आता है कि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती इस बार वर्ष 2022 में होने जा रहे विधान सभा चुनाव के दौरान बेरोजगारी को अपना चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव में उतरने का मन बनाया है लेकिन क्या यह बेरोजगारी का मुद्दा मायावती के द्वारा उत्तर-प्रदेश चुनाव में पहली बार चुना गया है? इससे पहले भी अनेको बार इस मुद्दे के बल पर उत्तर प्रदेश में पार्टियां चुनाव जीत कर सत्ता में काबिज होती रही हैं और बाद में प्रदेश के युवाओं को मूर्ख बनाते रहे कमोवेश यही हाल अन्य पार्टियों की भी रही हैं वैसे आप लोगों से सच्ची बात कहें तो आज तक देश मे बेरोजगारी की समस्याओं को किसी भी पार्टी द्वारा सच्चे मन से दूर करने के लिये न तो सोचा और न तो कोई कोशिश करने के लिये आगे आया है। देश से लेकर प्रदेश तक बेरोजगार और बेरोजगारी केवल चुनावी मुद्दे तक ही सीमित हो कर रह जाता है कियूंकि बेरोजगारी समाप्त होते ही राम जन्म भूमि अयोध्या के मुद्दे के समान हल होते ही मुद्दा गायब हो जायेगा तो फिर एसे ज्वलन्त चुनावी मुद्दा पार्टियां कहाँ से लाएंगी।
रामजन्म भूमि जैसा बेरोजगारी का मुद्दा भी बहुत पुराना हैं और इससे पहले भी अनेक पार्टियां इस मुद्दे वाली चुनावी नाव का खेवनहार बना कर उत्तर प्रदेश की सत्ता को हथियाने की कोशिशें कर चुकी हैं ऐसे में क्या मायावती इस मुद्दे के सहारे आगामी वर्ष उत्तर प्रदेश में चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी को हथियाने में कामयाब हो पाएगी, यह तो आने वाला समय ही बता पायेगा ?