जी के चक्रवर्ती
जिस लखीमपुर खीरी में किसानों को महंगी गाड़ी तले रौंदे जाने को लेकर इतना शोर-शराबा और बवाल होने के बाद भी जिस केंद्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को उनके पद से बर्खास्त नही किया गया जिससे देश के लोग हदप्रद रह गये थे। आज यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार यहां की आठ के आठों सीटों पर बीजेपी को इतने प्रचंड बहुमत से जीत कैसे मिली ?
आप लोगों को शायद याद होगा कि गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी की अनेकों आलोचनाओं के बावजूद केंद्रीय सरकार ने उन्हें मंत्री पद से नही हटाये जाने वाली बात ही बीजेपी के हक में चली गईं। दूसरी तरफ यदि हम देखें तो कानपुर के विकास दुबे एनकाउन्टर के बाद शायद ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों की योगी और मोदी पर नाराजगी व्यक्त किये जाने वाली बातों के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व ने आशीष मिश्रा के खिलाफ तो कानूनी कार्रवाई किया लेकिन उनके पिता पर इस आग की आंच आने नही दिया शायद इसी समर्थन के परिणाम स्वरूप लखीमपुर खीरी में कमल का फूल खिला। वैसे देखा जाय तो ऐसी बातों से एक तरह का संदेश भी उत्पन्न होता है कि आज भी हमारे देश कि जनता जातिगत आधार पर मतदान को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है ।
उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती की वह दौर भी कभी रहा है जब बसपा ब्राह्मणों के सम्मेलनों के आयोजनों के माध्यम से उन्हें खुश कर उनका मत हासिल किया, लेकिन मैजूदा समय मे भारतीय जनता पार्टी ने उनके स्वयं के नेताओं को किसी भी सूरत में समर्थन दिये जाने वाली बात से आज भाजपा को बसपा कि तुलना में उनके बड़े सुभचिंतक के रूप में लाखड़ा किया है इन सबके अतिरिक्त पार्टी के नेताओं के साथ पार्टी किसी भी सूरतेहाल में उनके साथ हमेशा खड़े रहने वाली बात हैं।
एक बात तो आज के परिदृश्य बहुत स्पष्ट है कि देश की कोई भी राजनैतिक पार्टी नैतिकता और आदर्श को महत्व देने के स्थान पर अपने राजनैतिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसी भी स्तर की राजनीतिक निर्णय लेने में परहेज नही करती है।
वैसे एक समय तो केवल उत्तर प्रदेश में ही नही वरण सम्पूर्ण भारत में गृहराज्य मंत्री के इस्तीफे की मांग बहुत जोरो से उठी थी परन्तु ऐसे समय मे भी बीजेपी ने अपनी पार्टी में ब्राह्मणों के महत्व को समझते हुये गृहराज्य मंत्री के इस्तीफा नही लेने से इसका प्रभाव यहां के उस वर्गों के लोगों के मध्य होने से जनता ने सब कुछ भूला कर भाजपा प्रत्याशी को जीता कर वहां स्थापित कर दिया। इन्ही बातों के परिपेक्ष में यह कहना पड़ता है कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही नही अपितु लगभग पूरे उत्तर प्रदेश की जनता आज से दो दशकों से पूर्व वाली समझ और दूरदर्शिता वाली स्थिति से ऊपर उठ चुकी है ऐसे में यह देश के लखीमपुर की जनता हो चाहे देश के किसी अन्य राज्य की जनता, वह जिसे चाहेगी उसे ही जिताएगी यह एक अलग मुद्दा है कि उस राज्य की जनता चुनावो के वख्त कितनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुये अपने लिये कैसे नेता का चुनाव करती है।
अब यदि हम विशेषकर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर राज्य की जनता की बात करें तो इतना सबकुछ होने के बावजूद भी आज लखीमपुर खीरी की सभी सीटें भाजपा की झोली गये हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाता है कि 21वीं शदी मे जीते हुये भी हम आज तक जातिगत राजनीति और जातिवाद जैसे सामाजिक कुरीतियों से ऊपर नही उठ पाएं हैं और फिलहाल इसमें बदलाव की संभावना भी नजर नही आती है। हमारे देश मे एक जातिविहीन समाज की कल्पना अनेको महापुरुषों द्वारा किया गया है लेकिन वास्तव में यह कल्पना आज भी हमारे समाज मे साकार रूप में अवतरित नहीं हो पाया है।